Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 50
________________ सुयगडांग सूत्र - पढमो सुयखंधो आहत्तहीयं १ ३ आहत्तहीयं तु पवेदइस्सं, णाणप्पगारं पुरिसस्स जातं । सतो य धम्मं असतो असीलं, संतिं असंतिं करिस्सामि पाउं | अहो य राओ य समुट्ठिएहि, तहागएहिं पडिलब्भ धम्म । समाहिमाघायमझोसयंता, सत्थारमेव फरुसं वयंति || विसोहियं ते अणुकाहयंते, जे आत्तभावेण वियागरेज्जा । अट्ठाणिए होइ बहूगुणाणं, जे णाणसंकाए मुसं वएज्जा || जे यावि पुट्ठा पलिउंचयंति, आयाणमढें खलु वंचयंति । असाहुणो ते इह साहुमाणी, मायण्णि एसिति अणंतघायं ॥ जे कोहणे होइ जगट्ठभासी, विओसियं जे उ उदीरएज्जा | अंधे व से दंडपहं गहाय, अविओसिए घासइ पावकम्मी ॥ | जे विग्गहीए अण्णायभासी, ण से समे होइ अझंझपत्ते । ओवायकारी य हिरीमणे य, एगतंदिट्ठी य अमाइरूवे || से पेसले सुहुमे पुरिसजाए, जच्चण्णिए चेव सुउज्जुयारे । बहु पि अणुसासिए जे तहच्चा, समे हु से होइ अझंझपत्ते || |८| जे यावि अप्पं वसुमं ति मंता, संखाय वायं अपरिक्ख कुज्जा । तवेण वा हं सहिए त्ति मंता, अण्णं जणं पस्सइ बिंबभूयं || एगंतकूडेण उ से पलेइ, ण विज्जइ मोणपयंसि गोत्ते । जे माणणटेणं विउक्कसेज्जा, वसुमण्णतरेण अबुज्झमाणे || जे माहणे खत्तिय जाइए वा, तहगपुत्ते तह लेच्छई वा । जे पव्वइए परदत्तभोई, गोत्ते ण जे थब्भइ माणबद्धे ॥ ण तस्स जाई व कुलं व ताणं, णण्णत्थ विज्जा-चरणं सुचिण्णं णिक्खम्म जे सेवइऽगारिकम्मं, ण से पारए होइ विमोयणाए || १२ णिक्किंचणे भिक्खू सुलूहजीवी, जे गारवं होइ सिलोगगामी । आजीवमेयं तु अबुज्झमाणे, पुणो पुणो विप्परियासुवेइ || १३ जे भासवं भिक्खु सुसाहुवादी, पडिहाणवं होइ विसारए य । आगाढपण्णे सुविभाविअप्पा, अण्णं जणं पण्णया परिभवेज्जा || 46

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