Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
View full book text ________________
सुयगडांग सूत्र - पढमो सुयखंधो २२ | एवं णिमंतणं लटुं, मुच्छिया गिद्ध इत्थीसु । अज्झोववण्णा कामेहिं, चोइज्जंता गया गिहं || त्ति बेमि ||
॥ बीओ उद्देसो समत्तो ||
।
तइओ उद्देसो जहा संगामकालम्मि, पिट्ठओ भीरु पेहइ । वलयं गहणं णूमं, को जाणेइ पराजयं ? || मुहुत्ताणं मुहुत्तस्स, मुहुत्तो होइ तारिसो | पराजियाऽवसप्पामो, इति भीरु उवेहइ || ३रु एवं तु समणा एगे, अबलं णच्चाण अप्पगं । अणागयं भयं दिस्स, अवकप्पंतिमं सुयं || को जाणइ विओवायं, इत्थीओ उदगाओ वा । चोइज्जंता पवक्खामो, ण णे अत्थि पकप्पियं ॥
इच्चेवं पडिलेहति, वलयाइ पडिलेहिणो । वितिगिच्छ समावण्णा, पंथाणं व अकोविया ॥
६ जे उ संगामकालम्मि, णाया सूरपुरंगमा ।
ने, किं परं मरणं सिया || ७ एवं समुट्ठिए भिक्खू, वोसिज्जाऽगारबंधणं ।
आरंभ तिरियं कटु, अत्तत्ताए परिव्वए || ८] तमेगे परिभासंति, भिक्खुयं साहुजीविणं ।
जे एवं परिभासंति, अंतए ते समाहिए || संबद्धसमकप्पा हु, अण्णमण्णेसु मुच्छिया । पिंडवायं गिलाणस्स, जं सारेह दलाह य || एवं तुब्भे सरागत्था, अण्णमण्णमणुव्वसा | णट्ठसप्पहसब्भावा, संसारस्स अपारगा || अह ते परिभासेज्जा, भिक्खू मोक्खविसारए | एवं तुब्भे पभासेंता, दुपक्खं चेव सेवहा ॥
णाऽभिहडं ति य । तं च बीओदगं भोच्चा, तमुद्देसादि जं कडं ||
Loading... Page Navigation 1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105