Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 37
________________ १७ सुयगडांग सूत्र - पढमो सुयखंधो १२ इहेगे मूढा पवयंति मोक्खं, आहारसंपज्जणवज्जणेणं । एगे य सीओदगसेवणेणं, हुएण एगे पवयंति मोक्खं ॥ पाओसिणाणादिसु णत्थि मोक्खो, खारस्स लोणस्स अणासएणं । ते मज्ज मंसं लसुणं च भोच्चा, अण्णत्थ वासं परिकप्पयंति ॥ उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं उदगं फुसंता । उदगस्स फासेण सिया य सिद्धि, सिज्झिंसु पाणा बहवे दगंसि | मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य, मग्गू य उद्दा दगरक्खसा य । अट्ठाणमेयं कुसला वयंति, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति ॥ १६ | उदगं जई कम्ममलं हरेज्जा, एवं सुहं इच्छामेत्तमेव । अंधं व णेयारमणुस्सरित्ता, पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा || पावाइं कम्माइं पकुव्वओ हि, सीओदगं तु जइ तं हरेज्जा । सिझिंसु एगे दगसत्तघाती, मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु ॥ हुतेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं अगणिं फुसंता | एवं सिया सिद्धि हवेज्ज तम्हा, अगणिं फुसंताण कुकम्मिणं पि || अपरिक्ख दिढ ण हु एव सिद्धी, एहिँति ते घायमबुज्झमाणा | भूएहिं जाण पडिलेह सायं, विज्जं गहाय तस थावरेहिं ॥ थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी, पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू । तम्हा विऊ विरए आयगुत्ते, दहूं तसे य पडिसाहरेज्जा | २१ जे धम्मलद्धं विणिहाय भुंजे, वियडेण साह य जे सिणाइ । जे धोवइ लूसयइ व वत्थं, अहाहु से णागणियस्स दूरे ॥ २२ कम्मं परिण्णाय दगंसि धीरे, वियडेण जीवेज्ज य आदिमोक्खं से बीय-कंदाई अभुंजमाणे, विरए सिणाणादिसु इत्थियासु || २३ | जे मायरं पियरं च हिच्चा, गारं तहा पुत्त पसुं धणं च । कुलाई जे धावइ साउगाई, अहाहु से सामणियस्स दूरे ॥ कुलाई जे धावइ साउगाई, आघाइ धम्मं उदराणुगिद्धे । अहाहु से आयरियाण सयंसे, जे लावएज्जा असणस्स हेउं | २५ णिक्खम्म दीणे परभोयणम्मि, मुहमंगलीए उदराणुगिद्धे । णीवारगिद्धे व महावराहे, अदूरए एहिइ घायमेव ||

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