Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 45
________________ २४ १ 13 ४ 19 ६ ७ 18 सुयगडांग सूत्र - पढमो सुखंधो इमं विमुक्के ण य पूयणट्ठी, ण सिलोयकामी य परिव्वज्जा ॥ णिक्खम्म गेहाउ णिरावकंखी, कायं विओसेज्ज णियाणछिण्णे । णो जीवियं णो मरणाभिकंखी, चरेज्ज भिक्खू वलया विमुक्के ॥ दसमं उज्झयणं समत्तं ॥ एगारसमं अज्झयणं मग्गं करे मग्गे अक्खाए, माहणेण मईमया । जं मग्गं उज्जु पावित्ता, ओहं तरइ दुत्तरं ॥ तं मग्गं अणुत्तरं सुद्धं, सव्वदुक्खविमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू, तं णे बूहि महामुणी ॥ जइ णे केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । तेसिं तु कयरं मग्गं, आइक्खेज्ज कहाहि णे ॥ जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा तेसिमं पडिसाहेज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥ अणुपुव्वेण महाघोरं, कासवेण पवेइयं । जमादाय इओ पुव्वं, समुद्दे व ववहारिणो ॥ अतरिंसु तरंतेगे, तरिस्संति अणागया । तं सोच्चा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे ॥ पुढवी जीवा पुढो सत्ता, आउजीवा तहाऽगणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तण रुक्ख सबीयगा ॥ अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया । एतावए जीवकाए, णावरे कोइ विज्जइ ॥ सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं, मइमं पडिलेहिया । सव्वे अकंतदुक्खा य, अओ सव्वे ण हिंसया ॥ 41 ॥ त्ति बेमि ॥

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