Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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सुयगडांग सूत्र - पढमो सुखंधो
१७ उवणीयतरस्स ताइणो, भयमाणस्स विवित्तमासणं । सामाइयमाहु तस्स जं, जो अप्पाणं भए ण दंस || उसिणोदगतत्तभोइणो, धम्मट्ठियस्स मुणिस्स हीमओ । संसग्गि असाहु राइहिं, असाही उ तहागयस्स वि ॥ अहिगरणकडस्स भिक्खुणो, वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अट्ठे परिहायइ बहू, अहिगरणं ण करेज्ज पंडिए || सीओदगपडिदुगंछिणो, अपडिण्णस्स लवावसक्किणो । सामाइयमाहु तस्स जं, जो गिहिमत्तेऽसणं ण भुंजइ ॥
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ण य संखयमाहु जीवियं, तह वि य बालजणे पगब्भइ । बाले पावेहिं मिज्जइ, इति संखाय मुणी ण मज्जइ ॥
छंदेण पलेइमा पया, बहुमाया मोहेण पाउडा । वियडेण पलेइ माहणे, सीउण्हं वयसाऽहियासए ||
कुजए अपराजिए जहा, अक्खेहिं कुसलेहिं दीवयं । कडमेव गहाय णो कलिं, णो तीयं णो चेव दावरं ॥
एवं लोगंमि ताइणा, बुइए जे धम्मे अणुत्तरे । तं गिण्ह हियं उत्तमं, कडमिव सेसऽवहाय पंडिए ॥
उत्तर मणुयाण आहिया, गामधम्मा इति मे अणुस्सु । जंसी विरया समुट्ठिया, कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥
जे एयं चरंति आहियं णाएणं महया महेसिणा । उट्ठय ते समुट्ठिया, अण्णोण्णं सारेंति धम्मओ ||
मा पेह पुरा पणामए, अभिकखे उवहिं धुणित्तए । एहि णो णया, ते जाणंति समाहिमाहियं ॥
जे
णो काहिए होज्ज संजए, पासणिए ण य संपसारए । णच्चा धम्मं अणुत्तरं, कयकिरिए य ण यावि मम ॥
छण्णं च पसंस णो करे, ण य उक्कोस पगास माहणे । तेसिं सुविवेगमाहिए, पणया जेहिं सुझोसियं धुयं ॥
अणिहे सहिए सुसंवुडे, धम्मट्ठी उवहाणवीरिए ।
विहरेज्ज समाहिइंदिए, आयहियं खु दुहेण लब्भइ ॥
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