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प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर
रसनयनसमेते पाणयुक्तेन चन्द्र ११५२६) गतवति सति नूनं विक्रमस्यव काले । प्रतिपदि धवलार्या माघ-मासस्य सोमे । हरिभयिनमनोसे निमितो ग्रन्थ एषः ।।७१॥ सहसयसंख्योऽयं सप्तपछिसमन्वित: (२०६७) । सप्तव व्यसनाद्यश्च कथासमुच्चयो ततः ।।७२।। यावत्सुवर्शनी मेसर्यावच्च सागराधरा । तावनन्दस्वयं लोके ग्रन्थो भव्यबनाश्रितः ॥७३॥
इति श्री इत्याः भट्टारक-यी धर्मसेनाभः श्री भीमसेन देवशिष्य-प्राचार्य सोमकीति -विरचिते सप्तव्यसनकथासमुच्चये परस्त्रीयमनफलवर्णनो नाम सप्तमः सर्गः । इति सप्तव्यसनचरित्रकथा संपूर्णा । २. प्रञ्च म्न चरित्र
प्रद्युम्न का जीवन चरित्र जैन कवियों के त्रिये बहुचनित रहा है । अम तक
मा, संत, जामो हिन्दी मा में २५ कवियों के प्रद्य म्न चरितों का पता लगाया जा चुका है 1 इस काव्य में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के जीवन का वर्णन किया गया है । प्रद्युम्न की माता रुकमणी श्री । प्रद्य म्न की गिनती पुण्य पुरुषों में की जाती है। प्रस्तुत प्रद्युम्न चरित्र १६ समों में विभक्त है जिसका रचनाकाल संवत् १५३१ पौष बुदी १३ बुधवार है। यह बाब कदि ने अपने गुरु भट्टारक भीमसेन के प्रसाद से लिखा था।
श्री भीमसेनस्य पवप्रसावत् सोमादिसत्कीतियुतेन भूमौ । रम्य चरित्र विततं स्वभक्त्या संशोध्य भव्यैः पठनीयमेतत ॥१६॥ संवत्सरे सत्तिथिसंज्ञके वै वर्षेत्र त्रिशंकयुते (१५३११ पवित्रे । विनिर्मितं पौषसुदेश्च तस्यां प्रयोदशी या बुधवारयुक्ता ॥१६॥
३. यशोधर चरित
मट्टारफ सोमकीर्ति ने यशोधर के जीवन पर संस्कृत एवं हिन्दी दोनों में ।
१. देखिये-प्रद्य म्न चरित की प्रस्तावना पृष्ठ-१३ ।
साहित्य शोध विभाग श्री दि. जैन अ. क्षेत्र श्रीमहावीरजी की ओर से प्रकाशित ।