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ब्रह्म यशोधर
दुर्लभता का वर्णन करते हुए विभिन्न प्रकार के पापों से बचने के लिये प्रेरणा दी गयी है । गीत बहुत छोटा है । ६ नेमिनाथ गोस
राजुल' नेमि के जीवन पर यह कवि का दूसरा गीत है । इस गीत में राजुल नेमिनाथ को अपने घर बुलाती हुई उनकी बाट जोह रही है । गीत छोटा सा है जिसमें केवल ५ पद्य हैं । गीत की प्रथम पंक्ति निम्न प्रकार है---
नेम जो प्राणु न घरे घरे।
वाटडीयां जोइ सिवयामा (ला) डली रे ।। ७. नेमिनाथ पीत
__ यह कवि का नेमिनाथ के जीवन पर तीसरा गीत है । पहले गीतों से यह गीत बड़ा है और वह ६६ पद्यों में पूर्ण होता है। इसमें नेमिनाथ के विवाह की घटना का प्रमुम्न वर्णन है । वर्णन मुन्दर, सरस एवं प्रवाह युक्त है । राजुलिनेमि के विवाह की तैय्यारियां जोर शोर से होने लगी। मभी गजा महाराजामों को विवाह में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रण पत्र भेजे गये । उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम आदि सभी दिशामों के राजागण उस बारात में सम्मिलित हुये । इसे वर्णन को कवि के शब्दों में पढिये:
कुकम पत्री पाठवी रे, नुत्र प्रावि प्रतिसार । दक्षिण मरहा गालवी रे, कुकरण कन्नड राउ ।।२।। गूजर मंटल सोरठीयारे, सिन्धु सबाल देश । गोपाचल नु राजाउरे, नीलो प्रादि नरेस ।। २३ ॥ मलवारी मारुयाडना रे. बुर सारणी सवि ईस ।
बाग-बी उदल मजकरी रे, लाड गउडमाघीस ॥२४॥
कवि ने उक्त पद्यों में दिल्ली को 'ढीली' लिखा है। १२ वीं शताब्दी के प्रपभ्रण के महाकवि श्रीधर ने भी अपने पासचरिज में दिल्ली को इल्लीशब्द से सम्बोधित किया था।
वागतियों के लिये विविध पल मंगाये गये तथा अनेक पकवान एवं मिठाइया
१. विक्कामग्दि सुपसिद्ध कालि, दिल्ली पण घण कण बिमालि ।
सनवासी प्रारह सरगिह, परिवाडि परिसह परिंगरादि 11