Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 196
________________ अशिम चुपई अह्म प्रादेश देउ हवि नाथ, राजमतीनु लीघु सार्थ ।। ५८ ।। वसुदेव नंदन विलसुथई, नमीय नेमि निज मंदिर गाउ । द्वारिका बहन बार बरसनी अविधज कहीं, दिन सवे पूग प्रावी सही ।। ७६ ।। तणि अवसरि प्राध्यु रषि राय, लेईय ध्यान से रह्य, मन माहि । अनेक कुमर ते यादव तरणा, धनुष धरी रमवाम्या घणा ||८० ॥ वनषंड परबत हीडिमाल, वाजि लूय तथ्या ततकाल । जोतां नीर न लाभि किहा, अपेय थान दीठां से तिहां ।। ८१ ।। तिणि प्रषसर ते पीधु नीर, विकल रूप से थया शरीर । ते परवत था पाछा वलि, एकि बिसि एक धरणी बलि ।। ६२ ।। एक नाचि एक गांव गीत, एक रोशएक हरषि चित्त । एफ नासि एक बलि धरि, एक सूइ एक क्रीडा करि ।। ८३ 11 इणि परि नगरी प्रावि जिसि, द्वीपायम मुनि दीठ तिसि । कोप करीनि ताडि ताम, देइ गाल वली लेई नाम ।। ८४ ।। पाप कर्म ते करि कुमार, पुहता द्वारिका नगर मझारि । केशव प्रागिल कही तीणि वात, द्वीपायन प्री ताड्यु तात ।। ८५ ॥ दूहा कुमर ज वाणि संभली , केशव धरि प्रणाहि । अविहर अक्षर जे सत्या, ते किम पाला थाइ ।। ८६ ॥ चुपई केशाय हलधर के बन जाइ, कर जोडी मुनि लागा पाइ । दोन वचन बोलि प्रति घणा, क्षमु साचु कहि दया मरणा ।। ८३|| कर संज्ञा जाणी तिरिम राइ, अति दुश्य प्राणी नगरी जाइ। अग्नि कोप तब दीठ खह' हलधर कृष्ण उपाय करय ॥८॥ सागर वाल्यु नमरी माहि, तपि तेल जिम धड़हड थाइ । नयर लोकते करि विलाप, पुपत्र भवनु प्रगट्यु' पाप ।। ८६ ।। एक बलता बुबार व करि, बालक लेइ एक नगरी फिरि । एक कहे ऊगायस माइ, एक दुख काया सघन जाई ।। ६० ।। एक मोझा धन धरती धरि, एक लक्ष्मी रषवाला करि । क्षमा एक प्रसरण प्राचार, एके एक क्षमापन करि ।। ६१ ।।

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