Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 210
________________ &# श्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर नेमिनाथ गोत राग गुडी सारद सामरिण बीनवु रे, माम्यु एक पसाउ । दिउ वाणी अझ निरमली रे, गासु नेम जिनराज 1 सामला व्रण जीनजि राजिल नारि पूरव भव नेह संभारि । यादव जीवी नवि राजिल नारि मुझ कांइ कर निरधारि । दयाल राय चीनवि राजिल नारि ॥ १ ॥ संत रमेवा कारण रे पुहुता वह मकारि । सोल सहस्र गोपांगना रे सरसा नेमि मोरारि । साम || २ || वाला केरा मांडवा रे सुरतर कुंम पुंज । केसूय मउ मोगरे पाटिल किरणी कुंज | साम || ३ || चंपक बैल बुलसरी रे तेह तगां कवि हार | सिर घालि जासूनडा रे कमले ताडिकृष्ण नाईर 1 साम || ४ || चंदन केशर अलि करी रे वापीय पूरी सार । गलयंत्र सु वली छांटणां रे रमिते विविध प्रकार 1 साम || ५ ॥ क्रीडा करी नेम नोकल्या रे वापीय तीरि जारिए । भावेज सुं तव इम भण्यु रे पोतिनी चोउ मारिए | साम ।। ६ ।। नेमि वय सुणी करी रे जांबुवती घरि मान 1 ए वितु श्रह्मति न दीजी रे, देवर नहीं तुह्य सान | साम ॥ ७ ॥ उरंग सेवा सुंता विसकरी रे पूर पंचाय हे विश्रह्मनि न श्रादरि रे गोपी केरु देव सा० ॥ ८ ॥ प्रेषणु देव कारण वली प्रत्थि तुझ प्राणि । उरे कुमार | इस जाणु तरबाहु सिरे तु परणु नेमनाथ । सा० । ६ ।। जांबुवती वा सुखी र कोपि मेगलनी परिमल पतु रे हुतु नागसेया जाई पुढीउ रेपुर तेन सब्दि घरा षडहड़ी रे मु उपरि परि श्रावी रे देत्य महारु संख कुरिण पूरीउ रे तेहनु प्रायुष द्वारि । सा० ॥ १० ॥ पंचायण देव । चमक्ध, केशवदेव ॥ सा० ॥ ११ ॥ दाणव नर राउ फेहुं हुं ठाउ | सा० ।। १२ ।। ५

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