Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोघर कानेय कुडल तप तपि रे मस्तिक छत्र सोहंति । सामला वण सोहामणु रे सोइ राजिल तोरु त || सा 11 ५४ ॥ प्रापरणा कंतनि निरषता रे होयलि हरष न माद।। प्राण पालीमि जिनतणी रे पाम्यु एहव नाह ।। सा ।। ५५ ।। मान्हडि कूड कपट करीरे जीवे भराव्या वाड । तोरणि जब वर मानीउ रे पसूडे करीम रोहाड || सा 11 ५६ ।। नेमि सारथी पूछीउ रे ए जीव विल विकाइ । पसूय बवेसि उग्रसेन रे यादव गुरव याई ॥ ५७ ।। सा॥ करुणा बाणी जब सांभलि रे सारथी सु प्रयधार । पिग धिग पडु इरिग पररपबिरे नहीं करु लाग्न संघार
|| सा ।। ५ ।। जिनजी बंधन काटीया रे पसूयां मेहल्यां रानि ।
स्थवाली वेगि बल्यु रे पुतु सहमा वन ।। सा ।। ५६ ।। राबुल का विलाप
तब राजिल पिलषी हुई रे कह सखी कवण विनाण । केहा प्रयगुण मि कीया रे चली गउ नाह सुजाण ।। सा ।। ६० ।। तव राजिल घरगी डली रे सीतल करि उपचार । वाय प्रालि वर वीजिणे रे चेत पाल्युतीणीवार || सा | नेम पूठियाली पुलि रे प्रीउ प्रोउ करती बाइ । नव भव केरी भागि प्रीतही रे कोइ वास मोह नाह ।। सा॥२॥ कंकरण फोहि करतणा रे रयए मह बोडि हार । काजल लूहिल हरे रालि न गोहर सार ।। सा ।। ६३ ।। संसार संग सवि परिहरी रे होउ बाल ब्रह्मचार । मुगतिन पंथ जिणि प्रादरपु रे लीघु संयम भार ॥ सा ।। ६४ ।। राजिल राणी झूरती रे जाई मली नेमि पास । स्वामीइ संयम प्रालीउ रे रयम गलि जास || सा ।। ६५ ।। गिरि गिरिनारि जाई चढ्यु रे सादरयु मुलसुध्यान । घाति करम सवि चूरीयां रे उपनु केवल ज्ञान !| सा ।। ६६ ।। इन्द्रासन तब कांपी रे नेम नि प्रगट्युन्यान । सुर नर पन्नग प्रावीया रे रच्यु समोस्त्रण ताम ।। सा ।। ५७॥

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