Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 213
________________ अथ नेमिमाथ गील सारथीइ रथ खेडीउ प्राडी मौनी जाइ । भावी भरव कलकले रे यमणु राजा थाइ । सा०।। ४१ ।। थारु उतारि एक कामनी रे पात्र नाधि प्रति चंग । षप-मप-मद्दल रण कीउ रे वेणा ताल सुरंग ॥ सा ।। ४२ ।। हय गय रथ सवि सांपरि रेहि लाउ रे प्रकास ।। पाताल नु रायसल सल्यु रे वनिता देइ एक भास ॥ ४३ ।। लग्न न दिन जब प्रावीउ रे रायमि करि सिंगगार । याद रहनी कचिली रे पहिरणि फाली सार । सा ।। ४४ ।। पायेय नेउर र झणि रे घूघरी नु धमकार । कटियंत्र सोहि रूडी मेषला रे झूमणु झलकि सार ।। ४५ ।। सा ।। रत्नजडित रूडी मुद्रिका रे करीयल चूडी तार । बाहि बिठा रूडा बहिरषा रे हायडोलि नबलख हार । सा ।। ४६ ।। कोटिय टोडर ख्यडुरे श्रवणे झन कि झाल । मल विट टीलु तप सपि रे षीटली षकि बालि ।। सा ।। ४७ ।। बांकीय भमरि सोहामणी रे नयणे काजल रेह ! कामिधनु जाए ताही उरे नर मन पाडया एह ।। सा ॥ ४ ॥ हीरे जडी रूडी राषडी रे वेशीय दंड उतारि । मणि पन्नग जाण पासीउ रे गोफणु लहिकि सार || सा॥ ४६॥ मस्तकि मुगट सोहामणु रे सिहिथि सीदूर पूर। चौउ चंदन रूहा फूलडां रे पान बीडीय प्रमूल ।। सा ।। ५० ।। सवि सिणगार साजी करी रे उपरि उठीप पाट । धवल देव वर कामनी रे जय जय बोलि भाट । सा ।। ५१ ॥ नेमि की पारात सखी ये राजिल परवरी रे मालीइ पुहुती आम । गुष चड़ी जोइ पालीए रे कहु सखी केहु मोह स्वाम ॥ सा ।। ५२ ।। नव षणु रथ सोबणमि रे रयण मंडित मुक्सिाल । हीसला भस्व जिणि बोता रे ललहि पजाय अपार ॥ सा || ५३ ।।

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