Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
१६द्र
प्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर परिभवि कि मुनि यादू बोल्या कि अपवाद । दामोदर दुख देई गउ, रोइ सरलि साद ।। १३१ ।। क्रिसर फोडिमि पालडी, किउ थाप्या प्रघाट । श्रीरंग सब पेषु सही, वसति उटीरे बाट ।। १३२ ।। सतीय शृंगार कि अपहरया, गुरु जनम लीयो रे मान । किजिन पूजामि परिहरी, बछवि हिल्यु तु रानि ।। १३३ ।। वनदेव तिविरणि फह, सुण वह रे प्रमाण । सरणि होतु तह्म तरिण, कुरिण लीया रे पराण ।। १३४ ।। ऊसभा कही इन किहनी, किहि सु कीजिन रोस । कीधु कराग भापरिण, देवह दाज न दास ।। ५५५ ।। रविकर कहु सुणु बातडी, मुणु निसपति चंद । विरोग किरणी बाटडी, जीवि हण्यु रे गोविंद ।। १३६ ।।
दहा रे ही यडा तुझनि कह रनडि किमिम रोइ । बंधन मार यु प्रापणु, सोइ अरीयण वनि जोड ।। १३७ ।। मोहनी कमि घणु मोहीउ, हृदय कमल प्यु अंध । दक्षिण दिश प्रति संचरितु, केशव कीधु कंचि ।। १३८ ।। प्रमता आणि प्रति भला, वनफल विविध विशाल । भोजन का भाई भणि तु, भरी करौं मूकि थाल ।। १३९ ।। दिन प्रति इम करता हूंया, हलघरनि षट्मास । मोह थकी माया करितु, ननि छोडि सब पास ।। १४० ।। इन्द्र कहि अमरह प्रति, ज्ञान तरिंग प्रयोग । बलभद्र मरसि मोहीउ, तु साहिसि धर्म वियोग ।। १४१ ।।
चुपई इन्द्र द्वारा प्रतिनीष
इन्द्र कहिं तो माउ मही, प्रतिबोधु लधर तिहाँ रही । चाल्या सुरसहि लही प्रादेस, प्रकनीय रूप करिम असेस ।। १४२ ।

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232