Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 201
________________ बलिभद्र चुपई १८६ असुर मली बुधी कीधी नबी, पथर उपरि पोयरण ठवी। सोचि नीर कमल निताम, तिरिण भवसरि तिहां पहुतु राम ।। १४३ ॥ कहि बलिभन्न तह्न भोला थाइ, पथर उरि मूल न जाइ । सुणु कुबर ए मूउ जागसि, तु पथरि पोयण लागसि ।। १४४ । । करीय सेस माधु संचरि, धेलू लेई एक घाणी भरि । उभु रही बल पूछि वात, केलू पोलुसुण हो भ्रात ।। १४५।। शिक्ता पीक्षण स्नेह न होइ, मूरष होइ विचारी जोइ । वेल ताहि तेल न तोइ, म मछुनवि जीवि कोह।। १४६ ॥ रोस करी पगमाभरि, असुर उपाय अनेरु करि । विषनु वृक्ष एवावि मही, अमृत फस कहि लागि सही ।। १४७ ॥ सीरी कहि मम बोलि प्रमार, विम अमृत किम होइ गमार । विष अमृत नवि हुइ ताम, मुड मई किम नौवि राम ।। १४ ।। बलिभद्र मछर मनि परिहरि, होयडा माहि विमासगि करि। अमर कहि साचुय सुजाण, मुइ मडि नचि मावि प्राण || १४६ ॥ मज्ञान पणि शन वा सरीर, दहन कर हवि केशव चीर । प्रदह मुइपा जिहां, कान्हड काया जालु तिहां ।। १५० ।। शब लेई मूक्यु पृथ्वी जाम, धरणी बोलि सुरिंग हो राम । दहन करे बचित्ति साम, अनेक हार बाल्यु हरिण ठाम ।। १५१ ।। तु जिहां जिहां जाई उभु रहि, तिहां तिहाँ प्रवनी प्रषिकु कहि । परवत माहि पेषी चाट, चस्य तु गेश्वर विषमाघाट ।। १५२ ।। संस्कारि श्रीरंनि, देवी दुर्टर ठाइ । अनुप्रेख्या वारि भली, तु चिति हलधर राह ॥ १५३ ।। हीयडा सुहषि मल्यु, कहिम करेषा मोह अयाण । मोह थकी जे नर भूया, ते पाम्या दुख खाणि ।। १५४ ॥ वस्ती बली हुँ तुझ मुंफ, रहे चित्त निज ठाम । धर्म महिंसा सु' रमि सत्तु, सरसि तुझ काम ।। १५५ ।।

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