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आचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
१७ वीं एवं १८ वीं शताब्दियों अपने गुरु भट्टारकों का गुणा गान करने की प्रथा थी । इन पदों में इतिहास ने कितने ही तथ्य छिपे हुए होते हैं ।
राग सवाब में कवि में कबीरदास के समान ही अपने में संसार की गहनता पर चर्चा की है तथा चौरासी लाख योनियों में यह प्राणी अनेक पंथों एवं धमों में भटकता रहता है लेकिन उसे तारनहार कोई नहीं मिलता। इसलिये जिनदेव हो एक मात्र तारनहार है इन्हीं तथ्यों पर आधारित यह पद्य लिखा गया है। पद बहुत छोटा है लेकिन सारगर्भित है ।
इस प्रकार ब्रह्म यशोधर का सम्पूर्ण साहित्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है । वे ग्रपने समय के समर्थ कवि थे तथा समाज में प्रत्यधिक लोकप्रिय थे। अपनी खोटी२ रचनाओं के माध्यम से वे पाठको में अपनी कृतियों के पठन-पाठन में रुचि पैदा किया करते थे । उन्होंने सब से अधिक नेमि राजुल से सम्बन्धित कृतियां लिखी श्री फिर चाहे वे छोटी हो या बड़ी ।
कवि ने पना पूरा साहित्य राजस्थानी भाषा में लिखा है। राजस्थानी भाषा से उन्हें अधिक लगाव था और उनके पाठक भी इसी भाषा को पसन्द करते थे । वास्तव में उच्च शताब्दि में होने वाले अधिकांश जैन कवियों ने राजस्थानी भाषा में अपनी रचना निबद्ध करने को प्राथमिकता दी थी।