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आचार्य सोमकीति
कर नकरी हुई। रोही मर कर बकरा हुा । जब यह बकरा दूध पीने लगा तो उसे देखकर बड़ा काँध याया और उसे मार डाला गया। लेकिन बह फिर बकरा हो गया । बकरा मर कर पुनः मैंसा हो गया। जिस को वरदस बणजारा भार लादने का काम लेने लगा। उसके पश्चात् के दोनों मर कर मुर्गा मुर्गी की योनि में पैदा हुए। उस मुर्गा मुर्गी ने मुनिराज से व्रत निये । लेकिन राजा उनके बोलने से अप्रसन्न हो गया इसलिये दोनों को पापी बाग से मार देवा । बौना फिर रानी के गर्भ में पाकर पुत्र-पुत्री हुए, जिनका नाम अभयचि एवं अभयमति रखा
गया।
एक विन राजा यशोमति बसंत ऋतु आने पर अपनी रानी के साथ वन भ्रमण को गया। उसी वन में सुदल मुनि ध्यानस्थ थे। मुनि को देखकर वे भी उनके पास जाकर बैठ गये और अपने पूर्व भदों का वृतान्त जानने की इच्छा प्रकट करने लगे । मुनि ने जगत की भसारता, पापों की भयानकता एवं पहिंसा धर्म पालन की महसा बतलाई साथ ही प्राटे के कुकुट युगल को मारने की भाव हिसा करने से यशोधर को कितने भवों तक जन्म धारण करके दुःख सहन करने पड़े इस बारे में विस्तार से कहा ।
एक दिन वह शिकारियों को साथ लेकर वन में गया। यहां ध्यानस्थ मुनि को देखकर क्रोधित हो गया तथा मुनि के ऊपर जंगली कुत्ते छोड़ दिये । उधर से एक कल्याण नामक बाजारा अपने बलों के साथ जा रहा था। जब उसने मुनि को ध्यानस्थ देखा तथा उस पर राजा द्वारा छोड़े हुए कुत्तों को देखा तो उसने राजा से मुनि महात्म्य के बारे में कहा । तो राजा ने मुनि के शरीर की ओर संकेत करते हुए कहा कि जो कभी स्नान नहीं करता, दांत साफ नहीं करता यह कैसे पवित्र हो सकता है। बणजारे ने इसके पश्चात् विस्तार से मुनि जीवन की विशेषताएं बतलायी तथा कहा कि “मुनिबर सदा पवित्र मंगल परमए जाण जे ।" साथ में यह भी कहा कि ये मुनि कालिंग राजा सुदत्त हैं । कल्याण बणजारा मुनि के चरणों के समीप बैठ गया। मुनि के वचनों के प्रभाव से राजा को भी वैराग्य हो गया । जब उसके दो पुत्रों को राजा के वैराग्य की मालम पड़ी तो तो उन दोनों ने भी वैराग्य चारण कर लिया और वे अभयरुचि एवं अभयमति के रूप में सामने हैं । काल्याण ने भी जिन दीक्षा धारण करती।
मुनि सुदत्ताचार्य ने कषायों, लेण्याओं की उग्रता, नरक योनि के दुःख के मारे में विस्तार से बतलाया तथा जिन पूजा, पात्रदान, णमोकार मन्त्र का जाप, सत्य भाषण, प्रादि की जीवन में उपयोगिता के बारे में बतलाया ।