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प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर कुशम दरसिप प्रकास तु, पंच शबद नादिए ।
मलपत मयमल कुभि तु, झरइ सुगंध मदए ॥३॥ राज्याभिषेक का एक वर्णन निम्न प्रकार है
कलस कनकतणा जारिग तु, तीर कने नीरे भरिए। पंच रसन तणो चुक तु, पूरीउ मनि रखीए ।
रयण मरिणगय थापितु, सिधामण तिहाँ बली ए । राम ने राज्याभिषेक के पश्चात् लक्ष्मण को युवराज पद, शत्रुघ्न को मदचिन मथुग का राज्य, विभीषन को लंका का राज्य दिया । हनुमान, नत्न नील मादि को अलगप्रलग उपहार देकर सम्मानित किया।
कवि ने रास समाप्ति पर अपनी लघुता प्रगट करते हुये लिखा है कि रामायण ग्रंथ का कोई पार नहीं पा सकता। वह तो स्वयं ही मतिहीन है इसलिये राम कथा को प्रति संक्षेप में वर्णन किया है।
ए रामायण ग्रंथ तु एह नु पार नहीं ए हु मानव मतिहीण तु, संवेपि गीत कही ए विद्वांस जे नर होउ तु, विस्तार ते करिए
ए राम भास मुणेवि तु, मुझ परि दयाधरा ए ॥३४।। राम को ग्रंथ प्रशस्ति में कवि ने अपना कोई विशेष परिचय नहीं दिया है केशव प्रपने गुरु ब्रह्म जिनदास एवं बाई घनश्री एवं ज्ञानदास जिनके आग्रह से प्रशुत रास की रचना की गयी थी का नामोल्लेख किया गया है
श्री ब्रह्मचार बिणदास तु, परसाद तेह तगाए । मनवांछित फल होइ तु, बोलीइ किस्यु' घणुए ॥३६॥ गुणकीरति क़त रास तु विस्तस मनि रलीए बाई धन श्री ज्ञानदास तु, पुण्यमती निरमलीए । गावउ रली रंगि रास तु, पावउ रिद्धि वृद्धिए।
मनवांछित फल होह तु, संपनि नवनिधिए । प्रस्तुत रास में १२ ढालें हैं जिनकी पद्य संख्या निम्न प्रकार है
प्रथम द्वाल दूसरी ,