Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 182
________________ १७० प्राचायंसोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर हरचन्द राजा साहस धीर, करमि अघमि घरि प्राण्यु नीर । करमि नस नर चूकू राज, दमयन्ती बनि कीची त्याज । ११४।। इनने में वहीं पर बलिभद्र मा गये और श्री कृष्ण जी को सोता हुआ जानकर जगाने लगे । लेकिन वे तब तक प्राणहीन हो चुके थे । यह जानकर बलिभद्र रोने लये तया अनेक सम्बोधनों से अपना दुःव प्रकट करने लगे । कवि ने इसका बहुत ही मार्मिक शब्दों में वर्णन किया है। जल विण किम रहि माछलु, तिम तुझ विष्णु बंध । विरीइ वनजिउ सासीउ, साल्या असला रे संघ ॥१३०।। यद्यपि रचना में मुख्यतः चुपई एवं दोहा छन्द है लेकिन बस्तु बंध छन्द, एवं दो ढालों का भी प्रयोग हुआ है। त्रस कवि को दोहा एव चौपई छन्द में काव्य रचना में अभ्यस्त था । १६ वीं शताब्दि में दोहा एवं धौपई दोनों ही छन्द प्रत्यधिक लोकप्रिय हो चुके थे तथा पाठक भी इन्हीं छन्दों को पसन्द करते थे। भाषा बलिभद्र चुपई राजस्थानी भाषा की कृति है । यद्यपि कवि का गुजरात से प्राधिक सम्बन्ध था लेकिन राजस्थानी भाषा से उसे अधिक लगाव था । फूल्या (४२) रयण (रत्न) सिंघासण (सिंहासन) ३६, श्राब्बा (प्राया ४८) मानथंभ (मानस्थंभ ५६) खंच्यू (सेंचा १०६) जाग्यु (जगना १२६) जैसे शब्दों को बहुलता से देखा जा सकता हैं 1 बलिभद्र चुपई के कुछ वर्णन तो बहुत ही अच्छे हुए हैं । भगवान नेमिनाथ का समवसरण क्या पाया मानों चारों ओर धन धान्य, हरियाली, सघन वृक्ष, बसंत जैसी बहार ही मा गयी इसी का एक बर्णन कवि के शब्दों में देखिये फूल्या वृक्ष फली धरण लता अनेक रूप पंखी सेवता । ठामि ठामि कोइल गहि गहि, मधु पल्लत्र केतकि महि महि ।१४।। जिणवर महिमा न लहुं पार, रतु छोडी तरु फलीया सार । माग्या मेत्र ते वरसि सदा, दुर्भाख्य बात न सोयणे कदा ॥४३।। जन दर्शन में कर्म सिद्धान्त पर गहन विवेचन मिलता है। कवि ने भी कमों की भाषा का सोदाहरण वर्णन करके कर्मों के प्रभाव की पुष्टि की है। इसी पर आधारित एक पाठ देखिये

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