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ब्रह्म यशोधर
है । इसी तंवद १५८५ में इन्होंने मुटके में कुछ पाठों की लिपि भी की थी।
जिन भट्टारकों का इन्होंने अपनी रचनामों में स्मरण किया है। उनके आधार पर न यशोधर का जन्म संवत् १५२० के पास पाम हुमा होगा। इनके जन्म स्थान के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । किन्तु इन्होंने अपनी रवनामों में बसपालपुर (बांसवाड़ा) गिरिपुर (डूगरपुर) एवं स्कंवनगर का उल्लेख किया है। इससे पता चलता है कि इनका बागड प्रदेश मुख्य स्थान था और इसलिये जन्म भी इसी प्रदेश के किसी ग्राम प्रथया नगर में हुआ होगा।
ब्रह्म यशोधर के पूर्व बन जिन दास हो चुके थे जिन्होंने राजस्थानी में विशाल साहित्य की सर्जना करके सबको चकित कर दिया था । द्र० यशोधर भी उन्हीं के पद चिह्नों पर चलने वाले साधु थे । यही कारण है कि उन्होंने जीवन के पन्तिम क्षण तक साहित्य देवता को अपने आपको समर्पित रखा । शिक्षा
अह्म यशोधर ने सर्व समम शोमीर के पास जा पश्चात् म: यश कीत्ति के पास शिक्षा प्राप्त की थी। संस्कृत एवं राजस्थानी भाषा पर अघिकार प्राप्न या । सर्व प्रथम इन्होंने ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने का कार्य प्रारम्भ किया । इनकी लिपि बहुत सुन्दर धी। छोटे एवं गोल याकार वाले अक्षर लिखना इन्हें बहुत प्रिय था । इनके स्वयं के द्वारा लिखे हये गुटके में पाठों का संग्रह मिलता है जैसे इन. प्रक्षर वैसा ही इनका निर्मल स्तभाव था । विहार
कविवर १० यशोधर अधिकांश समय भद्वारकों के माथ रहते थे या फिर उनकी गादी में रह कर प्रध्यवन एवं लेखन किया करते थे । स्वतन्त्र रूप में विद्यार नहीं होता था वैसे इनका अधिकांश समय साहित्य निर्मागा में व्यतीत होता था। रचनायें
कवि को अब तक निम्न रचनायें उपलब्ध हो चुरी है । 1. नेमिनाय गीत-(रचना काल सं० १५८१)
1. संवत पनर एकासीइ जी वसपाल पुर सार । नेमिनाथ गीत 2. गिरिपुर स्वामीय मंडणु श्री संध पूरवि पास रे ।। मल्लिनाथगीत 3. सबत पनर पच्चासीह स्कव नयर मझारि
भणि प्रजित जिनपर तणि, ए गुण गाया सार ।। १८२ बलिभद्र चुपई