________________
रामसीतारास
बैंगामती द्वारा दो वचनों की मांग
सांभलीय दशरथ भरिण कामिणी वर मांगु तुह्म प्रापसो । संमधिना नना याछित मागु ते २ई घणो ।।११॥२०॥ घणय न मांगु देव भरत नरेसर थापयो । दिउ मुझ पुत्रनि राज तो स्वामी संयम लीयो ।। मंचम लेवा राय दशरम नारि बोलबिति घरि । जो मरत कारपि राज देवा राजा तव प्रारंभ कार । तेहावीमा श्रीराम लक्ष्मण अरु शत्रुघ्न मावीया । पिता तणे पगि देगि लागीय दशरथ पुत्र मन भावीया । पिताप भरिण सुण राम अनुक्रमि राजए तहतणु । तपलेवा हवि जाउ ऋण उतारू प्रह्म तणु।। वाचा रण पिता तणु पुत्र उतारि इम जागी । केगामती का पुत्र भरतह राजदेवा जाणी । रामस्वामी मूगसि नामी पिता भाव ते जागीउ । भरत कुमरह बांहि साही रामि राजसभा माहि आणीउ ।।१६।। राजपालु ता सार बाप तरणो ऋण टालीह ।। माय जाऊं बन वास बाप तरको बोल पालीइ । पाली परमाण वाचा भरत राजा थपीउ । केगामती को लोक माहि सयल अपजस थ्यापीउ । राम पिता पगि वेग नागी धनुष कारण ते करि लोड । बंधव लक्षमण सहित स्वामी सीता साथि वनवास यउ ११४५७)
पांचवों दाल
भास नरेसूवानो नाम के वियोग में विलाप
रामस्वामी वनवास गना रे नरे सुवालो करिए। विलाप जननीस शेवि प्रति घणुए ॥ उदय प्राध्यु मुझ पाप दशरथ राजा वीनवि ए॥ अनुक्रम लोप्युमि सार भूरज वंसनु राजीउ ए । राम गयो वनवास कर्मना अक्षर किम लिए ।।