Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 169
________________ भट्टारक यशःकोति भट्टारक यमकीर्ति नाम के कितने ही भट्टारक एवं विद्वान् हो गये हैं जिनका वर्णन विभिन्न ग्रन्थ प्रशस्तियों में मिलता है। इनमें से कुछ भट्टारकों का परिचय निम्न प्रकार है (१) प्रथम यश कीति काष्ठा संघ माथुर गच्छ के पुष्कर गण शाखा के भट्टारक थे जो अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार, काठिन तपस्वी, प्राचीन एवं जीर्ण शीणं मथों के उद्धारक एवं कथा साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् थे । वे भट्टारक गुणकीर्ति के शिष्य थे । अपभ्रंश के महान वेत्ता पं रइन जैसे उसके शिष्य थे । जिन्होंने उनकी विद्वत्ता, सपस्या, लेजस्विता एवं अन्य गुणों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। उनके अनुसार वे प्रागम ग्रन्थों के अर्थ के लिये सागर के समान, ऋषीश्वरों के गच्छ : विजय की भी सुन्दर, मिनीका, जान मन्दिर एवं क्षमागुए से सुशोभित थे ।। महाकवि सिंह ने अपने पज्जुण्णचरिड में उन्हें संयम विवेकनिलव, विवुध-कुल लधुतिलक, भट्टारक भ्राता रहा है । यश कोनि द्वारा प्रणीत चार रचनाएं उपलब्ध होती है जिनके नाम पाण्डव पुराण, हरिवंश पुराण, जिणरत्तिकहा एवं रविषयकहा है। पाण्डवपुराण का रचना काल सं. १४६७ एवं हरिवंश पुराण का सं. १५०० है । यश कीति अपभ्रश के महान वेत्ता के साथ-साथ अन्यों की प्रतिलिपियां भी करते थे । राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में उनके द्वारा लिपिबद्ध कितनी ही पाण्डुलिपिया मिलती है। दूसरे भट्टारक यश कीति भट्टारक सोमदेय की परम्परा में होने वाले प्रमुख भट्टारक थे, वे अपने आपको मुनि पद से मम्बोधित करते थे। इनका विस्तृत वर्णन प्रागे किया जावेगा। तीसरे भट्टारक रामकोत्ति के पशिष्य एवं विमलकीति के शिष्य यशकीत्ति हए। ये भी अपने प्रापको मुनि लिखते थे। इन्होंने जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला नामक आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की थी। प्राकृत भाषा में निबद्ध भायुर्वेद विषय की एक मात्र कृति है जिसकी एक पाण्डुलिपि जयपुर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । 1. देखिये रहधू साहित्य का आलोचनात्म का इतिहास-डा. रानाराम जैन -पृण्ड ७४-७५,

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