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प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर लघु चितामसि पार्श्वनाथ जपमाल .
पाचार्य सोमकीर्ति का यह चिंतामणि पार्श्वनाथ जयमाल स्तवनात्मक है। इसकी एक विशेषता यह है कि जयमाल अपनी भाषा में हैं। १५ वीं शताब्दि में अपभ्रश का प्रचलन था तथा कविगण कभी-कभी अपभ्रश में भी अपनी कृतियों की रचना करते थे। इसलिये सोमकीति ने मी प्रपना अपभ्रंश के प्रति प्रेम प्रदर्शित फन्ने के लिये इसकी रसना की प्रथा पारवनाथ के प्रति अपनी भक्ति प्रदक्षित करने की दृष्टि से कवि ने इस अपमाल का निर्माण किया गया दिखता है।