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श्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर
दुय दुस पुत्त वालपड़ीयं, घीय कूप नधि संयोहो || ३ || ३८ ।। संदेह विश्वास जब से दिठ्ठउ, तव लोक ग्राभ भयं । बेकर जोडबि प्रति बहु भक्ति, मुनि प्रादेशज सरसिलयं ।। ३६ ।। बोलि त सेठ्ठी कहि तो कज्जे, मी मंदिर छ दिव्य घणं । श्री रामसेन मुनिवर सुपधि करु धम्मं श्री जिनह तणं ॥ ४ ॥ ४० ॥ मिध्यात दूर दवडीय चापीय जिन धम्म नयर मम्मि | चुसठसि कुल रोपनि पतट्टीउ बहुरुपतीय जिनवर भवने तब मुनिवर चलति क्षणं ॥ पूछि तब सेट्ठी सीस पथ नामी कवण कज्ञ चलति तर ।। ४२ ॥ हविरेण धृष्ट कारण प्रति संभलि पडसि तुय नयरे पवरे ।
देव
बहुरुज ।। ५ ।। ४१ ।।
श्रीरामसेन मुनिवर इम बोलि जाउ उत्तर बापुरे ॥ ४ ॥ ४३ ॥ नरसिंहपुर नयर तजीयते तिथ पहूता ।
गामह नामि नाम ज्याति वाति रवितलि सुपचिता ॥ ४४ ॥ सत्तावीसह गोत्र तेण थिरु करि पदीय
नरसिंहराय गुण ताम जिए षम्मद्द प्रणीय १ ४५ || श्रीशांति नाथ सुपसाउ करि श्री रामसेन उवएस धरि ।
मंडलिदखीयर तपि । तां रिषि वृद्धि श्रावयह् रे ।। ५ ।। ४६ ।।
हवि बोली
हवि ते श्रीरामसेन देव सरगा गुण समुद्र नि पार पाम वा कुरा समर जिरिए श्री रामसेनि जिन भापणा ग्याननि बलि करी चित्त संदेह भांजो प्रत्यक्ष वृष्टांत वैषाली । चुठि सि कुलि मरसिंहपुर पाटण तेह तथा संपूरणं मिथ्यात्व कुलि का प्रतिबोध श्रावक नु धर्म लेवायु अनि श्रीरामसेनि बलो ज्ञाननिबलि धूल वृष्ट हती जाणी । उतरवादि समस्त धावक जनगारी नरसिंह पुरा सत्तावीस गोत्र संयुक्त न्यात थापी । तेह गुरुना मनंत गुण बोलतां पार न पामीद ||