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ब्रह्म गुरणकीत्ति
ब्रह्म जिनदास के सात शिष्यथ । जिनके नाम हैं ब्रह्म मनोहर, ब्रह्म मल्लिदास, ब्रह्म गुरदास, ब्रह्म नेमिदास, ब्रह्म धर्मदास, ब्रह्म शान्तिदास्त्र एवं ब्रह्म गुणकीति । ये सातों ही शिप्य साहित्य सेवी थे तथा ब्रह्म जिनदास को साहित्य निर्माण में सहयोग दिया करते थे । ब्रह्म जिनदास ने अपनी विभिन्न कृतियों में अपने शिष्यों के नामों का उल्लेख किया है। लेकिन उन्होंने अपनी कुतियों में जिस प्रकार दूसरे शिष्यों के नामों का उल्लेख किया है उस प्रकार बल्ल मुणकति का उल्लेख नहीं मिलता है । इससे पता चलता है कि ब्रह्म गूगण की त्ति जनके कनिष्टतम शिष्य थे और उनके सम्पर्क में भी बहुत बाद में मारे थे । यदि ऐसा नहीं होता तो ब्रह्म निदास उमा सल्लेख किये बिना नहीं रहते ।
गुणकीति नाम के एक भट्टारक भी हो गये हैं जिनका पट्टाभिषेक संवत् १६३२ में डुगरपुर में बड़े उत्साह से हमा था। लेकिन हमारे नायक गुणकीत्ति तो ब्रह्मचारी थे। उनके गार्हस्थ एव साधु जीवन के सम्बन्ध में नामोल्लेख के अतिरिक्त अधिक दुछ नहीं मिलता । कवि ने अपनी एक मात्र कृति में चित्तौडगढ़ के नाम का दो बार उल्लेख किया है इससे यह तो अनुगान लगाया जा सकता है कि कवि का सम्बन्ध चित्तौड़गढ़ से रहा होगा लेकिन उनका शेष जीवन कि.स प्रकार व्यतीत हुप्रा इसकी प्रभी खोज होना शेष है ।
ब्रह्म गुरुतकीत्ति की एक मात्र कृति 'रामसीतारास" अभी तक हमारे देखने में भायी है । इसके अतिरिक्त कवि की ओर कितनी कृतियां हैं इसके सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन रामसीतारास को देखते हुए इनकी ओर भो कृतियां कहीं मिलनी चाहिये । ब्रह्म जिनदास ने संवत १५०८ में विशालकाय रामरास की रचना की थी। अपने गुरू की विशाल कृति होने पर भी गुणकीत्ति के द्वारा एक लघु रास काव्य के रूप में राम के जीवन पर कृति लिखने का पर्थ यही हो सकता है कि पाठकों को संक्षिप्त रूप में राम कथा को जानने की इच्छा रही होगी।
1. राजस्थान के जैन सन्त-व्यक्तित्व एवं कृतित्व-पृष्ठ १४०