________________
ब्रह्मगुणकीति
ते हाव भाव विलास विच मलय लावण्य वापिका । गौरव सुवर्ण छाया सुगंध परिमल कृषिका ॥ ॥ ७ ॥
मीना का स्वयंवर रचा गया । अनेक राजा महाराजाओं ने इसमें भाग लिया । धनुष चढाने की शर्त थी लेकिन धनुष घढाने में जब प्रभ्य राजाओं को सफलता नहीं मिली तोमर ने अपने पूरा नहाने के लिये कहा । राम ने पिता की आज्ञा की शिरोधार्य करके आनन्दित मन से धनुष चढा दिया ।
आपणा पिता ती बारणी सुम्पति स्वामी प्रदीमा सिंह जिस सिहालग मेलीय सकल सुर नर बंदीया ॥ वीय इन्द्र ते कनकधारे रत्न बरिषा करि घणी । जय जयारच साधु कलिरव का नब तिहुरण घी ॥१०॥
X
X
x
निरमलह बेदीय उपरि चडि करि बाम हस्ति धनुलीउ । दक्षिण हस्ति गुण परिनि रामिवि ज्ञावतं चावीयो ।
टकर नादि दह डिसि गंगन मंडल टलटल्या 1 पाताल शेषनि असुर सुर नर दैत्य दानव खलबल्या ||१७||
१२३
राम द्वारा धनुष चढाते ही नागर हिलोरे लेने लगा, नुमेरु पर्वत कांपने लगा, कितने ही तालाब फूट गये, देवता जय-जमकार करने लगे, सुगन्धित वायु बहने लगी एवं अमर भंकार करने लगे ।
जय जय श्रीराम देवह कंठि वरमाला घालीयि ।
स्वयम्बर में वरमाला द्वारा पति स्वीकार करने के पश्चात् राम और सीता का विवाह हुआ | लग्न मंडप तैयार किया गया । तोरण द्वार बांधा गया। मोतियों की बांदरवाल लटकायी गयी । स्वर्ण कलश रखे गये। स्वयं राम भी विभिन्न अलंकारों से सज्जित किये गये। गंध एवं किन्नर गा रहे थे। उनके सिर पर छत्र सुशोभित थे । चंवर बोले जा रहे थे तथा सौभाग्यवती स्त्रियां मंगल गीत गा रही थीं तथा लवाछना ले रही थी ।
राम जब तोरण द्वार पर आये तो द्वारा प्रेक्षसा किया और जब लगन मंडप में
सब आनन्दित हो गये । उनकी सास ने प्राये तो सौभाग्यवती स्त्रियों ने बबावा