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प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
ने उसे पूनः समझाया तथा जगत में जीवों के जन्म मरण की बात कही लेकिन यशोधर ने एक भी नहीं सुनी। अन्त में प्राटे का कुकुडा बनाकर देवी के मन्दिर में गया और देवी के प्रागे उसे मार दिया मौर इस प्रकार हिंसा का बन्ध कर लिया।
जब रानी को राजा के दीक्षा लेने की बात मालूम पड़ी तो वह शीघ्र राजा के पास गयी । कहने लगी कि एक बार उसके हाथ का प्रिय भोजन करके वैराग्य लेना वह भी उन्हीं के साथ तपस्विनी बन आवेगी । तभा 'तप करसां दोर्ड' इस प्रकार अपनी मार्मिक रीति से भावना व्यक्त की । राजा ने रानी की बात मानसी। राजा जिन पूजा के पश्चात् रानी के महल में गया । रानी ने सोने के थालों में राजा के लिए भोजन परोसा । विविध प्रकार के ध्यञ्जन परोसे गये लेकिन उनमें विष मिला दिया गया । तभी रानी ने कहा कि एक प्रावश्यक कार्यवश उसे अपने पीहर जाना है । सात दिन बाद वापिस पाजावेगी। रानी ने दो विष मोदक बनाये । एक माता के लिये और एक राजा के लिए। दोनों को विष के लड्डू खिला दिये । माता चन्द्रावती तो तत्काल ही मर गयी और राजा भी बंध-वैद्य करता मर गया । रानी
त्रिया चरि दिखनाया !
इम चीती हा हा करी छोटीय केश कलाप । मूरछ मसि उपरि पडी होयलि पारणोय पाप ।।
दोनों का दाह संस्कार किया गया। ब्राह्मणों को दान दिया गया। इसके पश्चाद राजा यशोधर एवं माता चन्द्रमती के भवों का क्रम प्रारम्भ होता है
राजा यशोधर मर कर स्वान हुअा और चन्द्रमती मोर हुई । एक शिकारी मे उस स्थान को पकड़ लिया और उज्जैनी नगरी में प्राकर राजा के पास ले गया राजा ने स्वान को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की तथा कुत्ते को सोने की जंजीर से बांध दिया । एक दिन कुत्ते ने रानी को कुबड़े के साथ कुकर्म करते हुए देख लिया । देखते ही कुसे को जाति स्मरण हो गया । वह अत्यधिक क्रोधित होकर तथा सांकल को तोड़ कर मोर का गला पकड़ लिया । राजा ने तत्काल श्वान को मार दिया । मोर भी मर गया । मोर मर कर काला सांप हुमा तथा स्थान सेहलु हुई। दोनों ने जब एक दूसरे को देखा तो फिर लष्ठ मरे 'मोर दोनों ही मर गये। अगले भव में सेहलु मर कर बड़ा मगर हुई तथा सांप रोही हो गया। एक दिन राजा की दासी उस तलाव पर नहा रही थी तभी उस मगर ने दासी को पकड़ लिया और जब राजा को खबर लगी तो उसने धीवर से मगर को पकड़ने का प्रादेश दिया । रोही ने जाल डाल कर उसे पकड़ लिया और उसे खूब मारा गया। अंत में वह मा