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श्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
एकत्रित कर दिये इसमें हरिया, रोझ, हाथी, घोड़े, बकरी, भैंस, गाय, बैल, बगुला, सारस चकवा श्रादि न जाने कितने जीव थे। राजा मन्दिर में गया और सिहासन पर बैठ गया । वहां आने पर जोगी ने राजा से कहा कि वह बत्तीस लक्षण युक्त नर युगल का अपने हाथों से बलिदान कर सके तो उसे उसी क्षण देवी की कृण से आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हो जायेगी। राजा ने फिर अपने सेवकों को चारों थोर भेजा ।
तीन दिन पूर्व ही दिगम्बर मुनि सुदत्ताचार्य का संघ वहां आया था और वन में ठहर गया था। मुनि के प्रभाव व वह जंगल सघन हो गया। फूल खिल गये और कोयल मधुर गान गाने लगी। इसको देखकर वह मुनि ध्यान के लिये श्मशान में चले गये । प्रमशान को विभत्सता देखते ही डर लगता था | स्थान स्थान पर प्रस्थियों के ढेर लगे हुए थे। लेकिन मुनि प्रामुक भूमि देखकर वहीं ध्यानस्थ हो गये। उस दिन चैत्र सुदि भ्रष्टमी यो इसलिए उपवास ले लिया । इतने में ही एक क्षुल्लक एवं एक क्षुल्लिका गुरु के पास आये और दोनों प्रोषधोपवास व्रत लेने की प्रार्थना करने लगे। मुनि ने उनकी लघु प्रायु देखकर नगर में जाकर आहार लेने के लिए कहा। वे दोनों आहार के लिये नगर की ओर चल दिये ।
वे दोनों को देखते ही । राजा ने उन दोनों देखकर आश्चर्य प्रगट
लेकिन जैसे ही दोनों उसके यश की कामना
राजा के सेवक भी ऐसे ही नर युगल की तलाश में थे। प्रसन्न हो गये और उनको चण्डमारी देवी के मठ में ले गये को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की लेकिन उनके सलोने रूप को किया और क्रोधित होकर अपनी तलवार सम्हालने लगा। क्षुल्लिक, क्षुल्लिका युगल ने राजा को शुभाशीर्वाद दिया, की तथा करोड़ वर्ष तक जीने का पाशीर्वाद दिया इससे राजा का क्रोध कम हुआ। उन दोनों के रूप को देखकर वह दंग रह गया और इतनी छोटी उम्र में साधुवेष अपनाने का कारण जानना चाहा लेकिन क्षुल्लक ने कहा कि वह जानकर क्या करेगा | वह तो पाप बुद्धि में फंसा हुआ है। उसके हाथ में तलवार है । संसार को पाने की उसकी इच्छा है । लेकिन राजा ने उससे फिर निवेदन किया । राजा की प्रार्थना को सुनकर क्षुल्लिक ने अपने जीवन का इतिवृत कहना प्रारम्भ किया ।
उज्जयिनी का राजा यशोध था। चंद्रमती उसकी रानी थी। दोनों हो भावक धर्म को पालने वाले । जब चन्द्रमती नाम यशोधर रखा गया। नगर में विभिन्न पर उसे उपाध्याय के पास पढ़ने भेजा गया ।
सुन्दरता की मूर्ति, सम्यक्त्वी एवं के पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ तो उसका उत्सव किये गये। पांच वर्ष का होने