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आप्त-परीक्षा। । (वैशेषिक ) यदि ईश्वर में इच्छा और प्रयत्न नहीं सिद्ध होते हैं तो न सही, ज्ञान मात्र से ही वह हमेशा समस्त कार्यों को करने में समर्थ हो सकता है । (जैन) आप के इस अनुमान में उदाहरण भी तो चाहिये ? । ( वैशेषिक ) समीहामन्तरेणापि, यथावक्ति जिनेश्वरः । तथेश्वरोऽपिकार्याणि, कुर्यादित्यप्यपेशलम् ॥१४॥ . आप का माना हुआ जिनेन्द्रदेव ही इस अनुमान में उदाहरण हो सकता है, जिस प्रकार बिना इच्छा के ही वह धर्म का उपदेश देता है, उसी प्रकार ईश्वर भी बिमा इच्छा के समस्त कार्यों को कर सकता है। (जैन) हमारे माने हुए जिनेन्द्र का दृष्टान्त भी यहांपर ठीक नहीं घट सकता, क्योंकिसति धर्मविशेषे हि, तीर्थकृत्वसमाह्वये । त्याग्जिनेश्वरो मार्ग, न ज्ञानादेव केवलात् ॥ १५ ॥ सिद्धस्यापास्तनिःशेषकर्मणो वागसंभवात् । बिना तीर्थकरत्वेन, नाम्ना नार्थोपदेशता ॥ १६॥
जिनेन्द्रदेव भी ज्ञानमात्र से ही केवल धर्म का उपदेश नहीं देते, किन्तु तीर्थकरत्व नामक पुण्यातिशय के