________________
५८
आत- परीक्षा ।
यदि आगम प्रमाण को सर्वज्ञ के अभाव का साधक मानोगे तो भी यह प्रश्न उठे बिना न रहेगा कि
नागमपौरुषेयोऽस्ति सर्वज्ञाभावसाधनः । तस्य कार्ये प्रमाणत्वादन्यथाऽनिष्टसिद्धितः ॥ १०२ ॥ पौरुषेयोऽप्यसर्वज्ञ प्रणीतो नास्य बाधकः । तत्र तस्याप्रमाणत्वाद्धर्मादाविव तत्त्वतः ॥ १०३ ॥
अपौरुषेय आगम को आप सर्वज्ञ का बाधक मानते हो, या पौरुषेय (जो किसी पुरुषका किया हुआ हो) आगम को ? अपौरुषेय आगम (जो कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के नामसे प्रसिद्ध है) को तो सर्वज्ञ का बाधक मान नहीं सकते; क्योंकि मीमांसक लोग स्वयं ही यह मानते हैं कि वेदों में जितनी श्रुतियां हैं, वे सब क्रियाकाण्ड ( पूजन पाठ आदि) को ही सिद्ध करती हैं । उन श्रुतियों से सर्वज्ञ का सद्भाव अथवा अभाव सिद्ध नहीं होता । और यदि अपौरुषेय आगम से कदाचित् मीमांसक लोग सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध करेंगे भी, तो उनके बचन से ही उनके उक्त सिद्धान्त का खण्डन हो जायगा । पौरुषेय आगम से सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध करने में भी यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जिस पुरुष का बनाया हुआ वह आगम है, वह पुरुष सर्वज्ञ है या असर्वज्ञ ? यदि सर्वज्ञ