Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 80
________________ जैनमत विचार । ७१ प्रशस्ति-- न्यक्षेणाप्तपरीक्षा प्रतिपक्षं क्षपयितुं क्षमा साक्षात् । प्रेक्षावतामभीक्ष्णं विमोक्षलक्ष्मीः क्षणाय संलक्ष्या १२२ यह आप्त परीक्षा नामक ग्रन्थ प्रतिपक्ष को समस्त रूप से दूर करने के लिये साक्षात् समर्थ है । और मोक्ष की लक्ष्मी के समान आनन्द की प्राप्ति के लिये विद्वान महाशयों के निरन्तर ग्रहण करने योग्य है। श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुत सलिलनिधेरिडरत्नोद्भवस्य । प्रोत्थानारम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् स्तोत्रं तीर्थोपमानं प्रथितपृथुपथं खामिमीमांसितं तत् । विद्यानन्दैः स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिद्धयै ॥ १२३ ॥ निर्मल २ ग्रन्थ-रत्नों को उत्पन्न करनेवाले, मोक्ष लक्ष्मी के कारणभूत तत्वार्थशास्त्ररूपी अद्भुत समुद्र में प्रवेश करते समय, बड़े २ ग्रन्थकारों ने सकल दोषों को दूर करने के लिये जो स्तोत्र किया है। मुझ विद्यानन्द नामक आचार्य ने भी संसार से पार करने के लिये तीर्थ के समान व संसारी जीवों को मोक्ष का

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