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जैनमत-विचार।
६९ मार्गो मोक्षस्य वै सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकः। विशेषेण प्रपत्तव्यो नान्यथा तद्विरोधतः ॥११८ ____ मोक्ष का सच्चा उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को ही समझना चाहिये । और इसके विरुद्ध नैयायिक आदि के माने हुए केरल दर्शनमात्र, ज्ञानमात्र, व चारित्रमात्र को मोक्ष का कारण न समझना चाहिये। क्योंकि जैसे किसी रोगी को दवाई का केवल विश्वासमात्र, ज्ञानमात्र वा चारित्रमात्र रोग से मुक्त नहीं करा सकता, उस ही प्रकार संसार से मुक्त करने के लिये भी केवल दर्शन या ज्ञान अथवा चारित्र समर्थ नहीं हो सकते । किन्तु सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की एकता ही मोक्ष का साक्षात् उपाय है. और-- प्रणेता मोक्षमार्गस्याबाध्यमानस्य सर्वथा । सक्षाद्य एव स ज्ञेयो विश्वतत्त्वज्ञताश्रयः ॥११९॥
सर्वज्ञतादि गुणों के आश्रयभूत अंहंत देव ही निर्दोषमोक्षमार्ग के साक्षात् उपदेशक होते हैं । तथा--
१ जीवजीव आदि सात तत्वों का सच्चा श्रद्धान करना। २जैसा पदार्थों का स्वरूप है उसको वैसा ही जानना । ३ जिन कार्यों के करने से कर्मों का बंध हो, उन कार्यों का त्याग करना।