Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 77
________________ आप्त-परीक्षा। भावकर्म क्रोधादिरूप जीव का परिणाम और संवर व निजरा को काँका शत्रु-समझना चाहिये तथा यह भी समझ लेना चाहिये । कि-- तत्स्कन्धराशयः प्रोक्ता भूभृतोऽत्र समाधितः ।' जीवाद्विश्लेषणं भेदः सन्तानात्यन्तसंक्षयः॥११५॥ द्रव्यकों के समूह को ही प्रारम्भ की तीसरी कारिका में भूभृत् की उपमा दी गई है । और अनादिकालीन कर्मों की संतति के अत्यन्त नाश होने को जीव से कर्मों का भेद होना बताया गया है । औरस्वात्मलाभस्ततो मोक्षःकृत्स्नकमेक्षयान्मतः ।। निर्जरासंवराभ्यां नुः सर्वसहादिनामिह ॥११६॥ निर्जरा व संवर से प्राप्त हुए समस्त कर्मों के क्षय से, उत्पन्न हुई आत्म स्वरूप की असली हालत की प्राप्तिको सब अचार्यों ने मोक्ष बताया है । यद्यपि-. . नास्तिकानां तु नैवास्ति प्रमाणं तन्निराकृतौ । : प्रलापमात्रकं तेषां नावधेयं महात्मनां ॥११७॥ ___ नास्तिक लोग मोक्ष का निराकरण करते हैं, परन्तु उनके द्वारा किये हुए माल के निराकरण में कोई प्रमाण नहीं मिलता। और केवल वचन मात्र से किये हुए निराकरण को विद्वान लोग आदर नहीं दे सकते । इस लिये

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