Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ पास-परीक्षा। जन पदार्थों का निषेध तो कर देते हैं, किन्तु जैनियों को नियमित एक २ धर्म वाले पदार्थों का ज्ञान नहीं होता (जैन) मिथ्यकान्तनिषेधस्तु युक्तोऽनेकान्तसिद्धितः । नासर्वज्ञजगत्सिद्धेः सर्वज्ञप्रतिषेधनम् ॥१०॥ जब कि वस्तु में युक्ति से अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व प्रमेयत्व, आदि अनेक धर्म सिद्ध होते हैं, तब पदार्थ में केवल एक धर्म का होना स्वतः ही निषिद्ध हो जाता है। (मीमांसक) जैसे जैन लोग पदार्थ में अनेक धर्म सिद्ध करके केवल एक धर्म वाले पदार्थ का अभाव सिद्ध कर देते हैं। उसी प्रकार हम भी जगत् में सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध करके सर्वज्ञ का निषेध कर सकते हैं। ___(जैन) आप संसार में सर्वज्ञ का निषेध तब ही कर सकते हैं, जब कि आपको कुल संसार का तथा उसमें रहने वाले त्रिकालवर्ती समस्त पुरुषों का ज्ञान हो जाय । और जब आप को कुल संसार के पुरुषों का ज्ञान हो १ जिस गुण के निमित्त से वस्तु सदा कायम रहे। २. जिस शक्तिके निमित्त से पदार्थ के गुण विखर कर अलग २ न हो जाय। ३ जिस गुण के कारण पदार्थ में हमेशा परिणमन होता रहे। जिस शक्ति के कारण पदार्थ किसी न किसी के ज्ञान का विषय हो ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82