________________
parrrrrrrrrrrranorrrrrrwwwwwwwwwwwwwwamrawrrorism
जैनमत विचार । है, तो उसका कहा हुआ आगम (शास्त्र) सर्व का बाधक न होकर उल्टा साधक ही हो जायगा । और यदि उस आगम का कर्त्ता असर्वज्ञ है तो उसके कहे हुए भागम में प्रमाणपना ही नहीं आ सकता, और जब उस आगम में स्वयं ही प्रमाणपना नहीं रहा, तब वह आगम अतीन्द्रिय धर्मादिक पदार्थों की तरह सर्वज्ञ के अभाव को भी वास्तव में सिद्ध नहीं कर सकता । रहा अभाव प्रमाण, वह भी सर्वज्ञ का बाधक वास्तव में तब-ही हो सकता है, जब कि-- अभावोऽपि प्रमाणं ते निषेध्याधारवेदने । निषेध्यस्मरणे च स्यान्नास्तिताज्ञानमञ्जसा ॥१०॥ न चाशेषजगज्ज्ञानं कुतश्चिदुपपद्यते । नापि सर्वज्ञसंवित्तिः पर्व तत्स्मरणं कतः ॥१.५॥ येनाशेषजगत्यस्य सर्वज्ञस्य निषेधनम् । परोपगमतस्तस्य निषेधे वेष्टबाधनम् ।।१०६॥ ____ सर्वत का अभाव सिद्ध करने वाले पुरुष को, निषेध्यभूत (जिसका अभाव सिद्ध किया जाय) सर्वज के, आधार (आश्रयभूत तीन लोक) का ज्ञान हो, और निषेध्य-स्वरूप सर्वज्ञ का स्मरण हो; क्योंकि कोई भी