Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 31
________________ २२ आप्त-परीक्षा। नहीं होती, इस लिये महेश्वर का ही सम्बन्ध माना जाता है आकाश का नहीं माना जाता (जैन) यदि आप ऐसा मानते हो कि जहां जिस की बाधा रहित प्रतीति होती है वहां पर उस का समवाय सम्बन्ध ही होता है, तो फिर संयोग सम्बन्ध और समवाय सम्बन्ध में कोई अन्तर ही नही रहेगा क्यों कि जिस कुंडे में दही भरी रहती है, उस में भी ऐसा ज्ञान होता है कि "इस कुंडे में दही है" (वैशेषिक) "महेश्वर में ज्ञान है" इस प्रतीति से समवाय की सिद्धि न सही ज्ञान और महेश्वर का सम्बन्ध मात्र तो निश्चित हो जाता है । (जैन) यदि सम्बन्ध मात्र ही सिद्ध करना चाहते हो तो हमारी कोई हानि नहीं, किन्तु समवाय की सिद्धि जो आप करना चाहते थे वह तो सिद्ध नहीं हो सकती। सत्यामयुतसिद्धौ चेन्नेदं साधुविशेषणम् । शास्त्रीयायुतसिद्धत्वविरहात्समवायिनोः ॥४२॥ द्रव्यं स्वावयवाधारं गुणो द्रव्याश्रयो यतः । लौकिक्ययुतसिद्धिस्तु भवेदुग्धाम्भसोरपि ॥४३॥ . (वैशेषिक) यद्यपि सम्बन्ध मात्र से समवाय की सिद्धि नहीं होती तो भी जो पदार्थ अयुतसिद्ध होते हैं अर्थात् जिन का आधार पृथक् २ सिद्ध नहीं होता

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