Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 51
________________ ૨ आप्त-परीक्षा। को ही भोक्ता कहते हैं, तब आप पुरुष को भोक्ता माने, और कर्त्ता न माने यह कदापि नहीं हो सकता। इस के अतिरिक्त जब आपने मोक्ष मार्ग का उपदेशक भी प्रकृति को ही मान लिया, फिर भी मोक्ष की सिद्धि के लिये आप के मत मे कपिल आदिक पुरुषों की ही उपासना की जाती है, यह आप की बुद्धि की बलिहारी है कि लाभ पहुंचे प्रकृति से और पूजा जाय पुरुष । अथवा मोक्षादिक हों प्रकृति को और मोक्ष की इच्छा करे पुरुष । [बौद्ध] यदि सांख्यमत के अनुसार कपिल, मोक्षमार्ग का उपदेशक नहीं बनता है तो न वनने दीजिये, परन्तु बुद्ध भगवान को तो मोक्षमार्ग का उपदेशक मानने में कोई हानि नहीं है, क्योंकि बुद्धभगवान शरीरधारी भी थे और सर्वज्ञ भी थे, तथा जगत के हित के लिये ही उनका जन्म हुआ था, जैसा कि इस वाक्य से स्पष्ट है "बुद्धो भवेयं जगते हिताय" (जैन) यह सब कुछ तो ठीक है परन्तु जब आपका यह सिद्धान्त है कि "नाकारणं विषयः" अर्थात् जो पदार्थ जिस जान का कारण नहीं, वह पदार्थ उस ज्ञान से जाना भी नहीं जा सकता, अथवा वह ज्ञान उस पदार्थ को जान ही नहीं सकता, तब आपके मत में कोई सर्वत्र वास्तव में सिद्ध हो ही नहीं सकता, क्योंकि जो पदार्थ

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