Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 50
________________ वैशेषिकमत-विचार । तदसंभवतो नूनमन्यथा निष्फलः पुमान् ॥८॥ भोक्तात्मा चेत् स एवास्तु कर्ता तदविरोधतः । विरोधे तु तयोर्भोक्तुः स्याद्भुजौ कर्तृता कथं ॥८१॥ प्रधानं मोक्षमार्गस्य प्रणेतृ स्तूयते पुमान् । मुमुक्षुभिरिति ब्रूयात्कोऽन्योऽकिंचित्करात्मनः॥८२॥ ____ तथा ज्ञानयुक्त होने से मोक्ष का उपदेश भी प्रकृति ही देती है, और सर्वज्ञपनाभी प्रकृतिका ही धर्म है, रजोगुण व तमोगुण से उत्पन्न होने वाले कर्मों का नाश भी प्रकृति ही करती है, (जैन ) जब प्रकृति अचतेन पदार्थ है तब उसमें सर्वज्ञपना व उसके द्वारा कर्मों का नाश होना कैसे सिद्ध हो सकता है, और यदि विवेकज्ञान न होने से संसारीपना व विवेकज्ञानी होने से जीवनमुक्तपना, आपको प्रकृति का ही धर्म मानना है तो फिर निरर्थक पुरुष के मानने की क्या आवश्यकता है। (सांख्य) यद्यपि ये सव कार्य प्रकृति के हैं और वह प्रत्येक कार्य के करने वाली है, तो भी प्रकृति के इन सब कार्यों का भोग करने वाले पुरुष के विना माने कार्य नहीं चल सकता, (जैन) जब पुरुष को आपने भोक्ता मान लिया तब प्रत्येक कार्य को करने वाला भी आपको पुरुष ही मानना पड़ेगा, क्योंकि जब भोग के करने वाले

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