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आप्त-परीक्षा। संसारभर के जितने पदार्थ हैं उन सब का अस्तित्व (मौजूदगी) तव ही सिद्ध हो सकता है जब कि वे किसी न किसी के ज्ञान से जाने जा सकते हों, क्योंकि जिस पदार्थ को संसार में कोई भी नहीं जानता उस पदार्थ का होना ही असंभव है। पदार्थों में जो ज्ञान के विषय होने का गुण है उस गुण को प्रमेयत्व कहते हैं। इस प्रमेयत्व गुण के कारण संसारभर के सम्पूर्ण पदार्थ किसी न किसी के प्रत्यक्ष ज्ञान से अवश्य ही जाने जाते हैं, जैसे अग्नि, धूप के द्वारा किसी पुरुष से जानी जाती है, इस लिये उसमें प्रमेयत्व भी है और उसका प्रत्यक्ष भी होता है। और जो इन सम्पूर्ण पदार्थों को प्रत्यक्ष ज्ञान से जानता है वही सर्वज्ञ कहलाता है, उसी को जैन लोग अहंत कहते हैं, (मीमांसक) जैनियों का जो यहां पर यह कहना है कि प्रमेयत्वगुण की वजह से समस्त पदार्थ अहंत देव के प्रत्यक्ष ज्ञान से जाने जाते हैं, यह ठीक नहीं है। क्योंकि प्रमेयत्व गुण तो दूर देश में स्थित सुमेरु पर्वतादिक में तथा सूक्ष्म परमाणु आदिक में भी रहता है परन्तु सुमेरु पर्वतादिक दूरस्थित पदार्थों को व परमाणु आदिक सूक्ष्म पदार्थों को जब हम लोग भी प्रत्यक्ष ज्ञान से नहीं जान सकते तब आपके माने हुए अर्हत देव, परमाणु आदिक सूक्ष्म पदार्थों को प्रत्यक्ष ज्ञान से कैसे जान सकते हैं । (जैन)