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आप्त-परीक्षा प्रत्यक्ष व अतीन्द्रियपत्यक्ष तो सर्वज्ञ के बाधक हो नहीं सकते।
(मीमांसक) यदि प्रत्यक्ष प्रमाण सर्वज्ञ का बाधक नहीं है तो न सही किन्तु अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, और आगम प्रमाण से तो सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध हो जाता है। (जैन) नानुमानोपमानार्थापत्त्यागमबलादपि विश्वज्ञाभावसंसिद्धिस्तेषां सद्विषयत्वतः॥ ९७ ॥ ___आपके कहे हुए अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, व आगम प्रमाण भी सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध नहीं कर सकते; क्योंकि ये चारों प्रमाण किसी वस्तु के अभाव को विषय न करके सद्भाव को ही विषय करते हैं।
(मीमांसक) आपका यह कहना ठीक नहीं है, कि अनुमानादि प्रमाण वस्तु के अभाव को विषय नहीं करते, क्योंकि हमनार्हनिःशेषतत्त्वज्ञो वक्तृत्वपुरुषत्वतः । ब्रह्मादिवदिति प्रोक्तमनुमानं न बाधकम् ॥९८॥ - वक्तत्व ( वक्तापना ) व पुरुषत्व (पुरुषपना) इन दोनों हेतुओं से सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध कर सकते हैं, और कह सकते हैं, कि जैनियों के माने हुए अर्हतदेव कदापि सर्वज्ञ नहीं हो सकते क्योंकि जैसे हम मनुष्य हैं और बोलते चालते व व्याख्यान देते हैं उसी प्रकार