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आप्त-परीक्षा। गुण पाये जाते हैं । जबकि प्रत्येक पदार्थ में बहुत से धर्म पाये जाते हैं तब हम ऐसी व्यतिरेक व्याप्ति कर सकते हैं अर्थात् ऐसा नियम बना सकते हैं कि जो पदार्थ अहंतदेव के, प्रत्यक्ष ज्ञान के, विषय नहीं हैं वे पदार्थ प्रमेय भी नहीं हो सकते, जैसे कि वस्तु में अनेक धर्म होते हुए भी नित्यपना,अनित्यपना आदि किसी एक ही धर्म का स्वीकार करना । यद्यपि वस्तु में नित्यपना, अनित्यपना आदि बहुत से धर्म रहते हैं, तो भी सर्व धर्मों को न मानकर वस्तु में केवल यदि कोई एक ही धर्म माना जाय तो वह वस्तु भी वास्तविक नहीं कहला सकती, इसलिये केवल एक धर्मवाला पदार्थ संसार में कोई है ही नहीं, जो कि अर्हत देव के प्रत्यक्ष का विषय हो । और जब इस प्रकार व्यतिरेक भी बन गया तब हम यह कह सकते हैं कि--- सुनिश्चितान्वयाद्धेतोःप्रसिद्धव्यतिरेकतः । ज्ञाताऽर्हन् विश्वतत्त्वानामेवं सिध्येदबाधितः॥९५॥
प्रमेयत्व हेतु का, और अहंतदेव के प्रत्यक्ष ज्ञानके विषयभूत पदार्थों का, परस्पर में निश्चित रूप से अन्वय व व्यतिरेक वन जाने के कारण, अस्तदेव समस्त पदार्थों को अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण से जानने वाले सिद्ध हो जाते हैं, और इनके मानने में कोई बाधा भी नहीं आसकती।