Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 57
________________ ४८ आस-परीक्षा। wwwww ऊपर कहे हुए प्रमेयत्व हेतु से देशान्तरित सुपेरु पर्वत वगैरह, कालान्तरित राम रावण वगैरह, स्वाभावान्तरित परमाणु वगैरह पदार्थों में ही अहंत देव के प्रत्यक्ष ज्ञान का विषयपना सिद्ध किया जाता है। नचाऽस्माक्समक्षाणामेवमहत्समक्षता । न सिद्धयेदिति मन्तव्यमविवादाद्वयोरपि ॥९॥ (मीमांसक ) जब कि संसार में जितने प्रत्यक्ष ज्ञान हैं वे सब इन्द्रियों से ही उत्पन्न होते हैं और इन्द्रिय जन्य कोई भी प्रत्यक्ष ज्ञान परमाणु वगैरह सूक्ष्म पदार्थों को नहीं जान सकता, तब आप किस प्रकार से मूक्ष्म पदार्थों को अहंत देव के प्रत्यक्ष का विषय मानते हो । __... (जैन) आपने यह कैसे जान लिया कि कुल प्रत्यक्ष ज्ञान इन्द्रियों से ही उत्पन्न होते हैं, और तीन लोक व तीनों काल के जितने पुरुष हैं उनमें कोई भी अतीन्द्रियज्ञान वाला नहीं है। क्योंकि जब आप भूत काल व भविष्य काल के तथा दूरदेश के समस्त पुरुषों को भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष से नहीं जान सकते, तब भूतकाल व भविध्यकाल के पुरुषों को इन्द्रिय प्रत्यक्ष होता है या अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष यह कैसे जान सकते हो । दूसरे यह बात है कि जब ज्ञान अतीन्द्रिय पदार्थ है, तब आप वर्तमान व सन्मुख पुरुष के ज्ञान की वावत भी यह निश्चय नहीं कर सकते कि

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