Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 49
________________ आप्त-परीक्षा। मुक्तजीवों के साथ प्रकृति का संबंध नहीं रहता, और कपिल आदिक के साथ रहता है, इसलिये मुक्त जीव ज्ञानी भी नहीं होते, और मोक्ष का उपदेश भी नहीं दे सकते । कपिल आदिक, प्रधान के संबंध होने के कारण ज्ञानी भी होते हैं, और मोक्ष का उपदेश भी देसकते हैं। (जैन) जब प्रकृति आपके मत में सर्वथा नित्य पदार्थ है, तब उसका किसी से संबंध और किसी से असंबंध ही नहीं बन सकता, कदाचित् ऐसा मानोगे भी तो प्रकृति के आप को दो भेद मानने पडेंगे । (सांख्य ) प्रकृति में संबंध व असंबंध की अपेक्षा जो यह भेद मालूम होता है वह सब काल्पनिक है, और कल्पना सब मिथ्या हुआ करती है, इस लिये वास्तव में प्रकृति एक ही नित्य पदार्थ है । (जैन ) यदि प्रकृति में उपयुक्त भेद काल्पनिक है, तो हम पूछते हैं कि पुरुष में मुक्त और संसारी ये भेद भी काल्पनिक क्यो नहीं । (सांख्य) हम पुरुष के संसारी और मुक्त भेदों को भी काल्पनिक मानते ही हैं, क्योंकि मुक्त और संसारी ये भेद भी प्रकृति के ही होते हैं और ज्ञान भी प्रकृति का ही धर्म है । प्रधानं ज्ञत्वतो मोक्षमार्गस्याऽस्तूपदेशकं । तस्यैव विश्ववेदित्वाद्धेतृत्वात्कर्मभूभृतां ॥७९॥ इत्यसंभाव्यमेवास्याऽचेतनत्वात्पटादिवत् ।

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