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वैशेषिकमत- विचार ।
एतेनैव प्रतिव्यूढः कपिलोऽप्युपदेशकः । ज्ञानादर्थान्तरत्वस्याऽविशेषात्सर्वथा स्वतः | ७७| ज्ञानसंसर्गतोज्ञत्वमज्ञस्यापि न तत्त्वतः । व्योमवच्चेतनस्यापि नोपपद्येत मुक्तवत् ॥७८॥
जिस प्रकार वैशेषिक, ईश्वर को मोक्ष मार्ग का उपदेशक मानते हैं उसी प्रकार सांख्य मत वाले कपिल को मानते हैं, परन्तु ज्ञान से सर्वथा भिन्न होने के कारण जैसे ईश्वर मोक्ष मार्ग का उपदेशक सिद्ध नहीं होता उसी प्रकार कपिल को भी सांख्यमतानुयायी ज्ञान से सर्वथा भिन्न मानते हैं, इस लिये वह भी मोक्ष मार्ग का उपदेशक नहीं बन सकता । और यदि स्वयं अज्ञानी कपिल को प्रकृति के धर्मरूप ज्ञान के संबंध से सर्वज्ञ मान भी लिया जाय तो भी उसमें वास्तविक सर्वज्ञपना नहीं आसकता, क्योंकि दूसरे के निमित्त से कपिल में यदि सर्वज्ञपना माना जायगा तो फिर आकाश वगैरह जड़ पदार्थों में भी ज्ञान के संबंध से सर्वज्ञपना मानना पड़ेगा, और आकाशादिक भी मोक्ष मार्ग के उपदेशक हो जायेंगे | और यदि यह कहो कि कपिल स्वयं चेतन है, इस लिये वह मोक्ष मार्ग का उपदेशक हो सकता है, तो हम पूछते हैं कि अन्य मुक्त जीव भी स्वयं चेतन है, वे मोक्ष मार्ग के उपदेशक क्यों नहीं होते । ( सांख्य )
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