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वैशेषिकमत-विचार । अभी उत्पन्न ही नहीं हुए वे तो बुद्धभगवान के ज्ञान में कारण हो ही नहीं सकते, और कारण न होने से बुद्धभगवान उनको जान नहीं सकते और जब बुद्ध भगवान उन पदार्थों को नहीं जान सके, तब उनको सर्वत्र कौन कह सकता है। सुगतोऽपि न निर्वाणमार्गस्य प्रतिपादकः । विश्वतत्त्वज्ञतापायात्तत्त्वतःकपिलादिवत्॥ ८३॥ है और जब वुद्ध भगवान में वास्तविक सर्वज्ञपना ही सिद्ध नहीं हुआ, तब वे भी कपिल आदिक की तरह कदापि मोक्षमार्ग के उपदेशक नहीं हो सकते । ... संवृत्या विश्वतत्त्वज्ञः श्रेयोमार्गोपदेश्यपि । बुद्धो वन्द्यो न तु स्वप्नस्तादृगित्यज्ञचेष्टितं ॥८४॥
वुद्ध देव को कल्पनामात्र से सर्वज्ञ और मोक्षमार्गोपदेशक मान कर पूज्य मानोगे तो ये सब काल्पनिक वातें खम ज्ञान में भी मालूम देती हैं, इसलिये स्वम ज्ञान वाले को भी पूज्य मानना पड़ेगा । इस के अतिरिक्तयत्तु संवेदनाद्वैतं, पुरुषाद्वैतवन्न तत् । । सिद्धयेत्स्वतोऽन्यतो वापि प्रमाणात्स्वेष्टहानितः ॥८५