Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ २६ आप्त-परीक्षा। marrrrrrrrrrrrrrrrrrrrammmmmmmm nananananaan निषेध हो गया, तब आप का माना हुआ आत्मा और मन का संयोग भी कैसे बन सकता है। जब आत्मा और मन का संयोग नहीं बना तब इन दोनों के संयोग से जो आप बुद्धि की उत्पत्ति मानते थे वह भी नहीं बन सकती। वुद्धि की सिद्धि न होने से उस के द्वारा जो आत्मा का अनुमान होता था, वह भी नहीं सिद्ध होगा। दो पदार्थों के संयोग से जो शब्द उत्पन्न होता था, वह भी उत्पन्न नहीं होगा, शब्द का अभाव होने पर उस के द्वारा आकाश की सिद्धि नहीं हो सकेगी। बहुत से परमाणुओं का संयोग न होने से अवयवी पदार्थ घट, पट, चन्द्र, सूर्य शरीरादिक भी सिद्ध नहीं हो सकेंगे, इन के सिद्ध न होने से दिशा और काल द्रव्य भी आप के मत में सिद्ध नहीं होंगे, क्योंकि चन्द्र सूर्यादिक के निमित्त से आप दिशा को सिद्ध करते हो, और शरीरादिक की पहले पीछे उत्पत्ति होने से काल की सिद्धि करते हो । समवाय सम्बन्ध का अभाव होने से समवाय सम्बन्ध वाले पन व पार्थिव श्रादिक परमाणुओं का तथा गुण कर्मादि का भी अभाव हो जायगा । इस प्रकार युतसिद्धि के न बनने से वैशेषिक के माने हुए किसी भी पदार्थ की सिद्धि नहीं होगी। यही इन के मत में व्याघात आता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82