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वैशेषिकमत- विचार ।
युतप्रत्यय हेतुत्वाद् युतसिद्धिरितीरणे । विभुद्रव्यगुणादीनां युतसिद्धिः समागता ॥४८॥
( वैशेषिक ) आकाश व आत्मादिक व्यापक पदार्थों में संयुक्तपनेका ज्ञान होता है, इसलिये उन की युत सिद्धिं बन जायगी । (जैन) इस प्रकार संयुक्तपने का ज्ञान तो वहां भी होता है। जहां २ पर कि, आप अयुतसिद्धि होने से समवाय मानते हो, जैसे कि गुणगुणी में, क्रिया- क्रियावान में, अवयव अवयवी में, यहां पर भी आपको युतसिद्धि माननी पड़ेगी और युतसिद्धि होने से समवाय के स्थान में संयोग की सिद्धि हो जायगी, इस लिये फिर भी युतसिद्धि नहीं बनी,
ततो नायुतसिद्धिः स्यादित्यसिद्धं विशेषणं । हेतो विपक्षतस्तावद् व्यवच्छेदं न साधयेत् ॥४६॥ सिद्धेऽपि समवायस्य समवायिषु दर्शनात् । इहेदमितिसंवित्तेः साधनं व्यभिचारि तत् ॥ ५० ॥
और युतसिद्धि न बनने से अयुतसिद्धि भी नहीं बनी, अयुतसिद्धि के न बनने से, आपने जो समवाय की सिद्धि के लिये दिये हुए हेतु का विशेषण " अयुतसिद्ध" दिया था वह भी नहीं सिद्ध हुआ और जब हेतु का विशेषण स्वयं ही असिद्ध हो गया, तब उसके द्वारा हेतु की विपक्ष से
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