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वैशेषिकमत- विचार
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सम्बन्ध क्यों नहीं मानते । एक द्रव्य में रहने वाले गुण, कर्म व सामान्य का आश्रय भी पृथक् २ न होने से उन की भी अयुतसिद्धि हो जानी चाहिये, और अयुत सिद्धि होने से परस्पर में आकाश व आत्मा का, तथा एक द्रव्य में रहने वाले गुण, कर्मादिकों का समवाय सम्बन्ध हो जाना चाहिये । (वैशेषिक ) यद्यपि आकाश व आत्मा आदिक व्यापक पदार्थों का “भिन्न २ आधार में रहना" इस लक्षण वाली युतसिद्धि नहीं बनती है तौ भी "संयोग की हेतु" इस लक्षण वाली युतसिद्धि बन जाती हैं इस लिये कोई दोष नहीं आता, (जैन) यह भी आप का कहना ठीक नहीं है, क्योंकि आप के मत से ही कर्म भी संयोग का हेतु होता है इस लिये युतसिद्धि का लक्षण कर्म में भी चले जाने से अतिव्याप्ति दोष आजाता है और अति व्याप्ति दोष आजाने से युतसिद्धि का यह लक्षण भी आप का नहीं वना, और लक्षण न बनने से युतसिद्धि सिद्ध नहीं हुई, जब युतसिद्धि नहीं सिद्ध हो सकी तब युतसिद्धि का अभावरूप अयुतसिद्धि भी सिद्ध नहीं हो सकती । युतसिद्धि के न सिद्ध होने से संयोग सम्बन्ध सिद्ध नहीं हुआ और अयुतसिद्धि के सिद्ध न होने से समवाय सम्बन्ध नहीं सिद्ध हुआ । जब संयोग मात्र ही का