Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

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Page 45
________________ आप्त-परीक्षा। स्वरूप सिद्ध न होने से ईश्वर की किसी भी पदार्थ में गणना न हो सकेगी। इसलिये सत वा असत, कोई भी स्वरूप ईश्वर का आप को अवश्य मानना पड़ेगा। खरूपेणासतः सत्वसमवाये च खांवुजे । स स्यात् किं न विशेषस्याभावात्तस्य ततोंजसा ॥६९॥ खरूपेण सतः सत्वसमवायेऽपि सर्वदा। सामान्यादौ भवेत्सत्वसमवायोऽविशेषतः ॥ ७० ॥ - और इन दोनों स्वभावों में से यदि आप ईश्वर को असत् स्वरूप मान कर उस में सत्ता का समवाय मानोगे, तो यह प्रश्न उपस्थित होगा कि जिस प्रकार ईश्वर असस्वरूप है, उस ही प्रकार आकाश के फूल वगैरह भी असत्स्वरूप हैं, फिर ईश्वर में सत्व धर्म का समवाय संबंध मानने और आकाश के फूल वगैरह में न मानने का क्या कारण है ? और यदि ईश्वर को स्वरूप से सत् मान कर भी उस में सत्व का समवाय मानोगे तो, हम पूछेगे कि जब आपने ईश्वर को स्वरूप से ही सत् मान लिया है फिर उसमें निष्पयोजन सत्व का समवाय सम्बन्ध मानने की क्या आवश्यकता है, और स्वरूप से सत ईश्वर में भी यदि सत्व का समवाय मानते हो, तो स्वरूप से सत् सामान्य वगैरह में सत्व का समवाय क्यों नहीं मानते ।

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