Book Title: Aaptpariksha
Author(s): Umravsinh Jain
Publisher: Umravsinh Jain

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ वैशेषिकमत-विचार । यद्येकत्र स्थितं देशे ज्ञानं सर्वत्र कार्यकृत् ।। तदा सर्वत्र कार्याणांसकृत् किं न समुद्भवः॥ ३२ ॥ कारणातरवैकल्यात्तथाऽनुत्पत्तिरित्यपि । कार्याणामीश्वरज्ञानाहेतुकत्वं प्रसाधयेत् ॥ ३३ ॥ सर्वत्र सर्वदा तस्य व्यतिरेकाप्रसिद्धितः । अन्वयस्यापि संदेहात्कार्य तहेतुकं कथम् ॥३४॥ . और यदि ईश्वर के अव्यापि (थोड़ी जगह में रहने वाले) ज्ञान को ही समस्त कार्यों का हेतु मानोगे तो भी उस ज्ञान से एक साथ ही सब जगह कार्य नहीं हो सकेंगे, क्योंकि अल्पदेशी ज्ञानरूप कारण अल्पदेश में हो कार्यों को उत्पन्न कर सकता है, सर्व देशों में उत्पन्न नहीं कर सकता। और यदि एक देश में रहने वाले ज्ञान से ही सर्व देशों में कार्यों की उत्पत्ति मानोगे तो हम यह भी कह सकते हैं कि जैसे एक देश में ज्ञान के रहने पर भी सर्ब जगह एक साथ ही कार्यों की उत्पत्ति हो जाती है, वैसे ही एक कालमें ज्ञान के रहने पर ही क्रम २ से होने वाले कार्य भी एक साथ ही हो जाने चाहियें। इसका उत्तर यदि यह दिया जाय कि और कारणों के न मिलने से एक साथ सब कार्य नहीं हो पाते हैं, तो फिर भी यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जब ज्ञान के रहते हुए भी और

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82