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आप्त- परीक्षा ।
कारणों के बिना मिले कार्य उत्पन्न नहीं होते, तथा और कारणों के रहते नियम से कार्य उत्पन्न हो जाते हैं तो और कारणों को ही संसार के कार्यों के उत्पन्न करने वाले मानना चाहिये, क्योंकि और कारणों के होने पर ही कार्य उत्पन्न होते हैं, इस लिये उन के साथ में अन्वय बनता है । तथा अन्य कारणों के न रहने पर कार्य भी उत्पन्न नहीं होते, इस लिये उन के साथ ही व्यतिरेक बनता है । ईश्वर के ज्ञान का कभी भी अभाव नहीं होता इस लिये उस के साथ व्यतिरेक तो बनता ही नहीं, किन्तु उस के सदा मौजूद रहने पर भी कभी कोई कार्य होता है और कभी नहीं होता, इस लिये अन्वय में भी सन्देह ही रहता है इस प्रकार ईश्वर के अल्पदेशी ज्ञान के साथ भी जब संसार के कार्यों का अन्वय व्यतिरेक नहीं बनता, फिर उस को कारण मानना निरर्थक है । एतेनैवेश्वरज्ञानं, व्यापि नित्यमपाकृतं । तस्येशवत्सदाकार्यक्रमहेतुत्वहानित: ॥ ३५ ॥
इसके अतिरिक्त ईश्वर के ज्ञान को व्यापक और नित्य मान कर यदि कोई निर्वाह करना चाहे तो वह भी नहीं हो सकता क्योंकि जैसे नित्य ईश्वर को कारण मानने पर कायों का क्रम २ से होना सिद्ध नहीं होता, उस ही प्रकार उस के नित्य व व्यापक ज्ञान को भी कारण