Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययन [१], ------ मूलं [३-५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: उपासक- दशाङ्गे ॥२॥ प्रत सूत्रांक [३-५] दीप अनुक्रम [५-७] मव दृइपलासे चेइए जणेव समणे भगवं महावीरे नेणेव उवागच्छइ २ ता तिम्बुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करइ २' ना आनन्दावन्दइ नमसइ जाव पज्जुवासइ॥ (म०३)। तएणं समणे भगवं महावीरे आणन्दस्म गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए ध्ययन जाव धम्मकहा, परिसा पडिगया, राया य गए (सू०४)॥ तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्म भगवओ महावीरस्स आनन्दस्यअन्तिए धम्मं सोचा निमम्म हट्टतुट्ठ जाव एवं वयामी-सदहामि णं भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं पत्तियामि 'णं भन्ते! दिः धर्मनिग्गन्थं पावयणं रोएमिणं भन्ते ! निग्गंथं पावयणं एवमेयं भन्ते ! तहमेयं भन्ते अवितहमयं भन्ते ! इच्छियमेयं भन्ते ! श्रुतिः श्रद्धा पडिच्छियमेयं भन्ते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भन्ते ! मे जहेयं तुब्भे वयहत्तिकह, जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे. राईसरतलवरमाडम्बियकोडुम्बियसेट्ठिसणावदसत्थवाहप्पभिइयो मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणमारियं पब्वइया नाका खलु अहं तहा संचाएमि मुण्डे जाव पवइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पश्चाणुवइयं सत्नसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामि, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिनन्धं करेह ॥ (सू० ५) 'प्रविस्तरो' धनधान्यद्विपदचतुष्पदादिविभूतिविस्तरः, 'बजा' गोकुलानि, दशगोसाहसिकेण-गोसहस्रदशकपरिमाणेनेत्यर्थः । तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्म अन्तिए तप्पडमयाए थूलगं पाणाइवायं - पञ्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा १। तयाणन्तरं च णं थूलगं मुसावायं पञ्चक्खाइ जावजीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयमा Turasurary.com आनन्दस्य धर्मश्रवण, श्रद्धा, श्रमणोपासक-व्रतस्वीकार

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